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विकृतिविज्ञान पेशियों में कोई परिवर्तन या विकृति नहीं मिलती । अनुतीव्र प्रायशः एक बालरोग है जो रोग के तीव्र आक्रमण के कारण बहुधा मिलता है पर कभी-कभी विना आक्रमण के भी देखा जाता है। इसमें आमवात का प्रमुख प्रभाव हृदय पर होता है। बालक अस्थि के सिरों पर अथवा सन्धियों में शूल का अनुभव करता है वह विकृत चरण (pes planus ) हो जाता है ।
आमवातज सन्धिपाक में सन्धियों में शूल की तीव्रता होती है उनमें लस्य-उत्स्यन्दन होता है जो कालान्तर में प्रचूषित हो जाता है पर उसमें पूय कभी नहीं बनता। आमवातज्वर प्रायः मिलता है । इस विषय पर अधिक विचार आमवात प्रकरण में होगा।
वातरक्तजन्य सन्धिपाक(Gouty arthritis)-वातरक्त नामक रोग (गठिया) में सन्धायीकास्थियों में मेहीय लवण ( urates ) संचित होने लगते हैं जिसके कारण उनका तान्तुकविहास ( fibrillar degeneration ) होजाता है और उनकी आकृति मखमली ( velvety ) होजाती है। मेहीय संचय बाह्य दो तिहाई भाग में होता है वह अस्थि तक नहीं जा पाता।
इस रोग में छोटी सन्धियाँ प्रारम्भ में प्रभावित होती हैं और बड़ी बाद में । सम्पूर्ण सन्धिगुहा में मेहीय लवणों के भर जाने से सन्धि की चेष्टाएँ समाप्त होकर कूट गतिस्थैर्य ( false alikylosis ) आ जाता है। बड़ी सन्धियों में कास्थि का अपरदन और व्रणन उन स्थानों पर विशेष मिलता है जहाँ सन्धायी धरातल आपस में मिलते हैं उन्हीं कास्थियों के परिसरीय भाग में कास्थिकीय प्रगुणन (cartilaginous proliferation ) होता रहता है। ___ यह प्रौढ़ावस्था का रोग है। इसमें पादाङ्गुष्ठ और अंगुलियों पर सर्वाधिक परिणाम होता है । इस रोग का प्रारम्भ सहसा होता है। सन्धि के समीपस्थ भाग का वर्ण बैंगनी होजाता है सूज और फूल जाता है।
लसी अन्तःनिक्षेपजन्य सन्धिपाक (Serum arthritis) का प्रारम्भ लसी के अन्तःनिक्षेप के दसवें दिन होता है वह हस्त-पाद की छोटी सन्धियों को प्रायशः प्रभावित करता है पर कभी-कभी बड़ी सन्धियों में वेदनायुक्त उत्स्यन्दन देखा जा सकता है । स्कार्लेट ज्वर, इन्फ्लुएंजा या अन्य किण्विक ज्वरों (zymotic fevers ) में भी दसवें दिन यह सन्धिपाक या सन्धिकलापाक देखा जाता है। सशूल उत्स्यन्दन वहाँ पर मिलता है। सन्धियाँ गतिविहीन और आकुंचित होजाती हैं । समीपस्थ अंग चिकने और फूले (puffy ) से प्रतीत होते हैं। शरीर पर उत्कोठ ( rash ) होजाते हैं। इस रोग में उरःअक्षकास्थि सन्धि (sternoclavicular joint ) तथा शंख-हन्वस्थिसन्धि ( temporo-mandibular joint ) कदाचित् ही प्रभावित होते हों ये दोनों सन्धियाँ प्रमेहजन्य सन्धिपाक में विशेष प्रभावित होती है।
* जानुजंघोरुकटचंसहस्तपादाङ्गसन्धिषु । निरस्तोदः स्फुरणं भेदो गुरुत्वं सुप्तिरेव च ॥ (चरक) + अंगुलसन्धीनां संकोचोऽङ्गग्रहोऽतिरुक् । (चरक)
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