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सुदशिनी टीका ० १ ० ११ माणिवधप्रयोजनकारवर्णनम् " रसायट्मासभेदोऽस्थिमज्जाशुकाणि धातवः' इति नह ' नवाः, 'नयण' नयनानि-नेत्राणि 'कण' कर्णाः 'हार' स्नायुः अङ्गमत्यगमन्धननाडीविशेषः 'नर' नासिका धमणि' धमन्योनाड्या, 'सिंग' श्राणि प्रसिद्धानि, 'दादि' दंप्टा 'पिन्छ' पिच्छ-मयूरादिपिच्छ, 'पिस' विपं-कालकूटादि 'विसाण' विषापानिजदन्ता , पालो केशाः, पपा 'हेउ ' हेतु हेतुमाश्रित्य अस्थिमज्जादिहेचोरित्यर्थः, 'हिमति' इति पूर्येण सम्बन्धः ॥०११॥ मजा नामक उठची चातु विशेप को प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (नर ) नखों का प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (नयण) नयननेत्रों को प्राप्त करने का, कितनेक का (फण्ण) कान प्राप्त करने का कितनेक का (पहारुणि ) स्नायुयों को अग प्रत्यगों को पाने वाली राडि विशेपों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनको (नक) नासिका प्राप्त करनेका, कितनेक का उनकी (धमणि ) धमनियां-नाडिया माप्त करने का, कितनेक का उनके (सिंग) शूगों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनकी (दादि) दाढों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनकी (पिच्छ) पिच्चों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (विस) कालकूट आदि विप प्राप्त करने का, कितनेक का उनके विपाण-गज दन्तों को प्राप्त करने का और कितनेक को उनके (जाल) वालों को प्राप्त क ने का उद्देश्य होता है। इन उद्देश्यों प्रयोजनों को लेकर अवधजन इनकी हिसा करते है।सू-११॥ વધિ તેમની “ મજ્જા નામની છઠ્ઠી ધાતુને પ્રાપ્ત કરવાને માટે, કેટલાકને १५ तेभन "नह" नमान मास ४२वाने भाटे, सा४२ १५ तेमना "नयण" નેત્ર પ્રાપ્ત કરવા માટે, કેટલાકને વધ તેમના “ ” કાન પ્રાપ્ત કરવાને भाट साउन १५ "हारुणि" स्नायुमाने 1 प्रत्यगाने साधनारी अर्थ નસ પ્રાપ્ત કરવા માટે, કેટલાકનો વધ તેમનું “a” નાક પ્રાપ્ત કરવાને માટે डेटसानी १५ तेमनी "धमणि" मनाया-नाडीमा प्रा ४२वाने भाटे, हैटલાકને વધ તેમના “ના” શિગડા પ્રાપ્ત કરવા માટે, કેટલાકને વધ તેમની "दाढि" at H ४२वाने भार, साइना १५ तमना "पिच्छ” पीछ। प्रास કરવાને માટે, કેટલાકને વધ તેમનુ “B” કાલકૂટ આદિ વિષ પ્રાપ્ત કરવાને માટે, કેટલાકને વધ તેમના વિષાણુ હાથી દાતને પ્રાપ્ત કરવા માટે, અને કેટ લાકને વધ તેમના “ના વાળ પ્રાપ્ત કરવાને માટે કરાય છેતે ઉ –પ્રયે