Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 30] [जीवाजीवाधिगमसूत्र [3] तेसिणं भंते ! जीवाणं सरीरा किसंघयणा पण्णता? गोयमा ! छेवट्टसंघयणा पण्णत्ता। [3] भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले कहे गये हैं ? गौतम ! सेवार्तसंहनन वाले कहे गये हैं / [4] तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा किंसंठिया पण्णता? गोयमा ! मसूरचंदसंठिया पण्णत्ता / [4] भगवन् ! उन जीवों के शरीर का संस्थान क्या है ? गौतम ! चन्द्राकार मसूर की दाल के समान है। [5] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति कसाया पण्णता? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा–कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोहकसाए। [5] भगवन् ! उन जीवों के कषाय कितने कहे गये हैं ? गौतम ! चार कषाय कहे गये हैं। जैसे कि क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय। [6] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सण्णा पण्णता? गोयमा ! चत्तारिसण्णा पण्णत्ता, तंजहा-आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्या। [6] भगवन् ! उन जीवों के कितनी संज्ञाएँ कही गई हैं ? गौतम ! चार संज्ञाएँ कही गई हैं, यथा-आहारसंज्ञा यावत् परिग्रहसंज्ञा / [7] तेसि गं भंते ! जीवाणं कति लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा! तिन्नि लेस्साप्रो पण्णत्ताओ, तंजहा—किण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा। [7] भगवन् ! उन जीवों के लेश्याएँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! तीन लेश्याएँ कही गई हैं / यथा-कृष्णलेश्या, नीललेश्या प्रौर कापोतलेश्या। [8] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति इंदियाइं पण्णत्ताई? गोयमा ! एगे फासिदिए पण्णत्ते / [8] भगवन् ! उन जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? गौतम ! एक स्पर्शनेन्द्रिय कही गई है। [9] तेसि गं भंते ! जीवाणं कति समुग्घाया पण्णता? गोयमा! तो समुग्घाया पण्णता, तंजहा–१. वेयणासमुग्याए, 2. कसायसमुग्याए, 3. मारणंतियसमुग्घाए। [9] भगवन् ! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे गये हैं ? . गौतम ! तीन समुद्घात कहे गये है। जैसे कि-१. वेदना-समुद्घात, 2. कषाय-समुद्धात मोर 3. मारणांतिक-समुद्धात / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org