________________ 122] [जीवाजीवाभिगमसूत्र तथा सम्मूछिम जन्म वाले नपुसकवेदी होते हैं। अतएव गर्भजतियंचों, गर्भजमनुष्यों में और देवों में स्त्रियां होती हैं। इसलिए स्त्रियों के तीन प्रकार कहे गये हैं। तियं चस्त्रियों के तीन भेद हैं, जलचरी, थलचरी और खेचरी / तिर्यंचों के अवान्तर भेद के अनुसार इनकी स्त्रियों के भी भेद जानने चाहिए। इसी तरह मनुष्यस्त्रियों के भी कर्मभूमिका, अकर्मभूमिका और अन्तरद्वीपिका भेद हैं / मनुष्यों के प्रवान्तर भेदों के अनुसार इनकी स्त्रियों के भी भेद समझने चाहिए। जैसे कर्मभूमिका स्त्रियों के 15. अकर्मभूमिका स्त्रियों के 30 और अन्तरद्वीपिकानों के 28 भेद समझने चाहिए। भवनपति, वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों के भेद के अनुसार ही इनकी स्त्रियों के भेद समझने चाहिए। वैमानिक देवों में केवल पहले सौधर्म देवलोक में और दूसरे ईशान देवलोक में ही स्त्रियां हैं। प्रागे के देवलोकों में स्त्रियां नहीं हैं। अतएव वैमानिक देवियों के दो भेद बताये हैं--सौधर्मकल्प वैमानिक देवस्त्री और ईशानकल्प वैमानिक देवस्त्री। इस प्रकार स्त्रियों के तीन भेदों का वर्णन किया गया है। स्त्रियों को भवस्थिति का प्रतिपादन 46. इत्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा! एगेणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई। एक्केणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं णव पलिग्रोवमाई। एक्केणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाई। एक्केणं आएसेणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उफ्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाई / [46] हे भगवन् ! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? गौतम ! एक अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की स्थिति है / दूसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट नो पल्योपम की स्थिति कही गई है। तीसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात पल्योपम की स्थिति कही गई है। चौथी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पचास पल्योपम की स्थिति कही गई है। विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में सामान्य रूप से स्त्रियों की भवस्थिति का प्रतिपादन किया गया है। समुच्चय रूप से स्त्रियों की स्थिति यहाँ चार अपेक्षाओं से बताई गई है। सूत्र में आया हुआ 'आदेश' शब्द प्रकार का वाचक है / ' प्रकार शब्द अपेक्षा का भी वाचक है। ये चार आदेश (प्रकार) इस प्रकार हैं (1) एक अपेक्षा से स्त्रियों की भवस्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। यह तिर्यंच और मनुष्यस्त्री की अपेक्षा से जानना चाहिए / अन्यत्र इतनी जघन्य स्थिति नहीं होती / उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम की है। यह ईशानकल्प की अपरिगृहीता देवी की अपेक्षा से समझना चाहिए। (2) दूसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त (पूर्ववत्) और उत्कृष्ट नो पल्योपम / यह ईशानकल्प की परिगृहीता देवी की अपेक्षा से समझना चाहिए / (3) तीसरी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त (पूर्ववत्) और उत्कृष्ट सात पल्योपम / यह सौधर्मकल्प की परिगृहीता देवी की अपेक्षा से है। 1. 'आदेसो त्ति पगारों' इति वचनात् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org