Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 716
________________ सर्वजीवाभिगम (205 कालो। तिरिषखजोणिणी णं भंते ! 0? जह• अंतो० उक्को तिणि पलिमोवमाई पुज्यकोडिपुटुत्तम महियाइं। एवं मणसे मणूसी। वे जहा नेरइए। देवी गं भंते ! 0? जहणणं बस वाससहस्साई उक्को० पणपन्न पलिपोवमाई। सिद्ध णं भंते ! सिद्धेत्ति० ? गोयमा साइए अपज्जवसिए। गैरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? जह० अंतो०, उक्को० वणस्सइकालो। तिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ०? जह० अंतोमुहुत्तं, उक्को० सागरोवमसयपुहृतं साइरेगं / तिरिक्खजोणिणी गं भंते ? गोयमा! जह० अंतो०, उक्को० वणस्सइकालो। एवं मणुस्सवि मणुस्सीएवि / देवस्सवि देवीएवि / सिद्धस्स णं भंते! ? साइयस्स अपज्जवसिए णस्थि अंतरं। एएसि णं भंते ! णेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मणूसाणं मणूसीणं वेवाणं सिद्धाणं य कयरे० ? गोयमा सव्वत्थोषा मणुस्सोमो, मणूसा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिणीनो असंखेज्जगुणाओ, देवा संखेज्जगुणा, देवीमो संखेज्जगुणामो, सिद्धा अणंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा / सेत्तं प्रदविहा सम्वजीवा पण्णता। 255. अथवा सब जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि-नैरयिक, तिर्यग्योनिक, तिर्यग्योनिकी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवी और सिद्ध / भगवन् ! नैरयिक, नैरयिक रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम तक रहता है। तिर्यग्योनिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल तक रहता है। तिर्यग्योनिकी जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहती है। इसी तरह मनुष्य और मानुषी स्त्री के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए / देवों का कथन नैरयिक के समान है। देवी जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से पचपन पल्योपम तक रहती है। सिद्ध सादि-अपर्यवसित होने से सदा उस रूप में रहते हैं। भगवन् ! नैरयिक का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। तिर्य ग्योनिक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है / तिर्यग्योनिकी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार मनुष्य का, मानुषी स्त्री का, देव का और देवी का भी अन्तर कहना चाहिए / सिद्ध सादि-अपर्यवसित होने से अन्तर नहीं है। भगवन् ! इन नैरयिकों, तिर्यग्योनिकों, तिर्यग्योनिनियों, मनुष्यों, मानुषीस्त्रियों, देवों, देवियों और सिद्धों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़ी मानुषी स्त्रियां, उनसे मनुष्य असंख्येयगुण, उनसे नैरयिक असंख्येयगुण, उनसे तिर्यग्योनिक स्त्रियां असंख्यातगुणी, उनसे देव संख्येयगुण, उनसे देवियां संख्येय गुण, उनसे सिद्ध अनन्तगुण, उनसे तिर्यग्योनिक अनन्तगुण हैं। विवेचन-इनका विवेचन संसारसमापन्नक जीवों की सप्तविध प्रतिपत्ति नामक छठी प्रतिपत्ति में देखना चाहिए / यह अष्टविध सर्वजीवप्रतिपत्ति पूर्ण हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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