Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 724
________________ सर्वजीवाभिगम] एएसि णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाण य कयरे ? गोयमा ! सम्वत्थोबा पढमसमयतिरिक्खजोणिया, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। एएसि णं भंते ! पढमसमयमणसाणं अपढमसमयमणूसाण य कयरे०? गोयमा ! सम्वत्थोवा पढमसमयमणूसा, अपढमसमयमणूसा असंखज्जगुणा / जहा मणूसा तहा देवावि / एएसि गं भंते ! पढमसमयसिद्धाणं अपढमसमयसिद्धाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पढमसमसिद्धा, अपढमसमयसिद्धा अणंतगुणा। एएसि णं भंते ! पढमसमयनेरइयाणं अपढमसमयनेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणसाणं अपढमसमयमणसाणं पढमसमयदेवाणं अपढमसमयदेवाणं पढमसमयसिद्धाणं अपढमसमयसिद्धाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहियावा? गोयमा ! सम्वत्थोवा पढमसमयसिद्धा, पढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, पढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयसिद्धा अणंतगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा / सेत्तं वसविहा सम्धजीवा पण्णत्ता / सेत्तं सध्धजीवाभिगमे / इसि जीवाजीवाभिगमसुत्तं सम्मत्तं / (सूत्रे ग्रन्थाप्रम् 4750 // ) 259. अथवा सर्व जीव दस प्रकार के हैं, यथा--- 1. प्रथमसमयनै रयिक, 2. अप्रथमसमयनै रयिक, 3. प्रथमसमयतिर्यग्योनिक 4. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, 5. प्रथमसमयमनुष्य, 6. अप्रथमसमयमनुष्य, 7. प्रथमसमयदेव, 8. अप्रथमसमयदेव, 9. प्रथमसमय सिद्ध, 10. अप्रथमसमयसिद्ध / भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनै रयिक के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम! एक समय तक / भगवन् ! अप्रथमसमयनैरयिक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! एक समय कम दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक रहता है। भगवन् ! प्रथमसमयतिर्यग्योनिक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! एक समय तक / अप्रथमसमय तिर्यग्योनिक जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण तक और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल तक रहता है / भगवन् ! प्रथमसमयमनुष्य उस रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! एक समय तक / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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