Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
________________ [207 .. भगवन् ! इन एकेन्द्रियों, द्वीन्द्रियों, श्रीन्द्रियों, चतुरिन्द्रियों, नैरयिकों, तिर्यंचों, मनुष्यों, देवों और सिद्धों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य हैं, उनसे नैरयिक असंख्येयगुण हैं, उनसे देव असंख्येयगुण हैं, उनसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच असंख्येयगुण हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे श्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उनसे सिद्ध अनन्तगुण हैं और उनसे एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं / विवेचन-सूत्रार्थ स्पष्ट ही है / इनकी भावना और युक्ति पूर्व में स्थान-स्थान पर स्पष्ट की जा चुकी है। 257. अहवा गवविहा सयजीवा पण्णत्ता तं जहा--पढमसमयणेरइया अपढमसमयणेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणुस्सा अपढमसमयमणुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा सिद्धा य / पढमसमयणेरइया णं भंते ! कालमो०? गोयमा! एक्कं समयं / अपढमसमयणेरइएणं भंते ! o? जहण्णेणं वस वाससहस्साई समय-उणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समय-उणाई। पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स गं भंते ! . ? एक्कं समयं / अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स गं भंते ! * ? जहण्णणं खुड्डागं भवग्महणं समयऊणं, उक्कोसेमं वणस्सइकालो। पढमसमयमणसे णं भंते ! .? एक्कं समयं / अपढमसमयमणूसे णं भंते ! * ? जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयऊणं, उक्कोसेणं तिणि पलिनोवमाई पुग्यकोडिपुहुत्तमम्भहियाई। देने जहा मेहए। सिद्ध मं भंते ! सिद्धेत्ति कालमो केवचिरं होई ? गोयमा ! साइए अपनवसिए। पढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तममहियाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपडमसमयमेरझ्यस्स णं भंते ! अंतरं 0? जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। पढमसमयतिरिक्खजोनियस्स णं भंते ! अंतरं कालमो. ? जहण्गेणं दो खुड्डागाइं भवगहणाई समय-ऊणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपतमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ * ? जहणणं खुड्डाणं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं / पढमसमयमणूसस्स जहा पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स / अपढमसमयमणूसस्स णं भंते ! * ? जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं, समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। पढमसमयदेवस्स जहा पढमसमयरइयस्स / अपढमसमयदेवस्स जहा अपडसमयणेरड्यस्स / सिखस्स णं भंते ! * ? साइयस्स अपज्जवसियस्स गयि अंतरं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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