________________ 150 / जीवाजीवाभिगमसूत्र सोहम्मोसाणेसु णं भंते ! देवा एगत्तं पभू विउटिवत्तए, पुहुत्तं पभू विउवित्तए ? हंतापभूः एगत्तं विउब्वेमाणा एगिदियरूवं वा जाव पंचिंदियरूवं वा, पुहुत्तं विउव्वेमाणा एगिदियख्वाणि वा जाव पंचिदियरूवाणि वा; ताई संखेज्जाइंपि असंखेज्जाइपि सरिसाइंपि असरिसाइंपि संबद्धाइंपि असंबद्धाइंपि रूवाई विउध्वंति, विउवित्ता अप्पणा जहिच्छियाई कज्जाइं करेंति जाव अच्चुओ।। गेविज्जणुत्तरोवधाइयादेवा कि एगत्तं पभू विउस्वित्तए, पुहत्तं पभू विउवित्तए ? गोयमा ! एगत्तंपि पुहुत्तंपि / नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा विउच्वंति वा विउविस्संति वा / सोहम्मीसाणदेवा केरिसयं सायासोक्खं पच्चणुब्भवमाणा विहरति ? गोयमा ! मणुग्णा सद्दा जाव मणुण्णा फासा जाय गेविज्जा / अणुत्तरोववाइया अणुत्तरा सद्दा जाव फासा / सोहम्मीसाणेसु देवाणं केरिसया इड्ढी पण्णत्ता? गोयमा ! महड्ढिया महिज्जुइया जाव महाणुभागा इड्ढीए पण्णत्ता जाव अच्च प्रो। गेविज्जणुत्तरा य सव्वे महिड्डिया जाव सम्वे महाणुभागा अणिदा जाव अहमिदा णामं णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो! 203. भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्पों में देवों में कितने समुद्घात कहे हैं ? गौतम ! पांच समुद्धात होते हैं—१. वेदनासमुद्घात, 2. कषायसमुद्घात, 3. मारणान्तिकसमुद्घात, 4. वैक्रियसमुद्घात और 5. तेजससमुद्घात / इसी प्रकार अच्युतदेवलोक तक पांच समुद्घात कहने चाहिए / अवेयकदेवों के आदि के तीन समुद्घात कहे गये हैं-- वेदना, कषाय और मारणान्तिक समुद्घात / भगवन् ! सौधर्म-ईशान देवलोक के देव कैसी भूख-प्यास का अनुभव करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! यह शंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि उन देवों को भूख-प्यास की वेदना होती ही नहीं है / अनुत्तरोपपातिकदेवों पर्यन्त इसी प्रकार का कथन करना चाहिए। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्पों के देव एकरूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं या बहुत सारे रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! दोनों प्रकार की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं। एक की विकुर्वणा करते हुए वे एकेन्द्रिय का रूप यावत् पंचेन्द्रिय का रूप बना सकते हैं और बहुरूप की विकुर्वणा करते हुए वे बहुत सारे एकेन्द्रिय रूपों की यावत् पंचेन्द्रिय रूपों को विकुर्वणा कर सकते हैं / वे संख्यात अथवा असंख्यात सरीखे या भिन्न-भिन्न और संबद्ध (प्रात्मप्रदेशों से समवेत) असंबद्ध (प्रात्मप्रदेशों से भिन्न) नाना रूप बनाकर इच्छानुसार कार्य करते हैं / ऐसा कथन अच्युतदेवों पर्यन्त कहना चाहिए। - भगवन् ! ग्रैवेयकदेव और अनुत्तर विमानों के देव एक रूप बनाने में समर्थ हैं या बहुत सारे रूप बनाने में समर्थ हैं ? गौतम ! बे एकरूप भी बना सकते हैं और बहुत सारे रूप भी बना सकते हैं। लेकिन उन्होंने ऐसी विकुर्वणा न तो पहले कभी की है, न वर्तमान में करते हैं और न भविष्य में कभी करेंगे। (क्योंकि वे उत्तरविक्रिया करने की शक्ति से सम्पन्न होने पर भी प्रयोजन के प्रभाव तथा प्रकृति की उपशान्तता से विक्रिया नहीं करते।) ___ भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प के देव किस प्रकार का साता-सौख्य अनुभव करते हुए विचरते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org