________________ सेर 150] [जीवाजीवाभिगमसूत्र पढमसमयणेरइयाणं जाव अपढमसमयदेवाण य कयरे कयरहितो अप्पा वा ? सव्वत्थोवा पढमसमयमणुस्सा, अपढमसमयमणुस्सा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा / सारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। अट्टविहपडिवत्ती समत्ता। 227. अन्तरद्वार-प्रथमसमयनैरयिक का जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष है, उत्कृष्ट अन्तर वनस्पतिकाल है / अप्रथमसमयनैरयिक का जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। प्रथमसमयतिर्यक्योनिक का जघन्य अन्तर एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयतिर्यक्योनिक का जघन्य अन्तर समयाधिक एक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कृष्ट सागरोपमशतपृथक्त्व से कुछ अधिक है। प्रथमसमयमनुष्य का जघन्य अन्तर एक समय कम दो क्षुल्लकभव है, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयमनुष्य का अन्तर जघन्य समयाधिक क्षुल्लकभव है और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। देवों के सम्बन्ध में नैरयिकों की तरह कहना चाहिए। जैसे कि प्रथमसमयदेव का जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयदेव का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अल्पबहुत्वद्वार-भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिकों यावत् प्रथमसमयदेवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयमनुष्य, उनसे प्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयदेव असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यक्योनिक असंख्येयगुण / अप्रथमसमयनैरयिकों यावत् अप्रथमसमयदेवों का अल्पबहुत्व उक्त क्रम से ही है, किन्तु अप्रथमसमयतिर्यक्योनिक अनन्तगुण कहने चाहिए। भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिकों और अप्रथमसमयनैरयिकों में कौन किससे अल्पादि हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयनै रयिक, उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण हैं / इसी प्रकार तिर्यक्योनिक, मनुष्य और देवों के प्रथमसमय और अप्रथमसमयों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिकों यावत् अप्रथमसमयदेवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? __ गौतम ! सबसे थोड़े प्रथमसमयमनुष्य, उनसे अप्रथमसमयमनुष्य असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयदेव असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यक्योनिक असंख्येय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org