________________ 160] [जीवाजीवाभिगमसूत्र दूसरा अल्पबहुत्व अप्रथमसमयिकों का लेकर कहा गया है / वह इस प्रकार है सबसे थोड़े अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय, उनसे अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। तीसरा अल्पबहुत्व प्रत्येक एकेन्द्रियादि में प्रथमसमय वालों और अप्रथमसमय वालों की अपेक्षा से है / वह इस प्रकार है सबसे थोड़े प्रथमसमयएकेन्द्रिय हैं, क्योंकि द्वीन्द्रियादि से आकर एक समय में थोड़े ही उत्पन्न होते हैं / उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं, क्योंकि वनस्पतिकाल अनन्त है / द्वीन्द्रियों में सबसे थोड़े प्रथमसमयद्वीन्द्रिय हैं, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय असंख्येयगुण हैं, क्योंकि द्वीन्द्रिय सब संख्या से भी असंख्यात ही हैं / इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, और पंचेन्द्रियों में भी प्रथमसमय वाले कम हैं और अप्रथमसमय वाले असं चौथा अल्पबहुत्व उक्त दस भेदों की अपेक्षा से कहा गया है / वह इस प्रकार है सबसे थोड़े प्रथमसमयपंचेन्द्रिय, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयश्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। युक्ति स्पष्ट ही है। इस प्रकार दसविधि प्रतिपत्ति पूर्ण हुई। उसके पूर्ण होने से संसारसमापनक जीवाभिगम भी पूर्ण हुआ। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org