Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 698
________________ सर्वजीवाभिगम] [17 पलियसयं दसुत्तरं अट्ठारस चोद्दस पलियपुहत्तं समओ जहणणं / पुरिसवेयस्स जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं / नपुंसगवेयस्स जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं प्रणतं कालं वणस्सइकालो। अवेयए दुविहे पण्णत्ते, साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। से जहन्नेणं एक्क समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं / इस्थिवेयस्स अंतरं जहणणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बणस्सइकालो। पुरिसवेयस्स जहन्नेणं एग समयं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। नसगवेयस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोषमसयपुहुत्तं साइरेगं / अवेयगो जह हेट्ठा। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा पुरिसवेदगा, इत्थिवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अर्णतगुणा, नपुंसकवेदगा अणंतगुणा। 245. अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुसकवेदक और अवेदक। भगवन् ! स्त्रीवेदक, स्त्रीवेदक रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! विभिन्न अपेक्षा से (पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक) एक सौ दस, एक सौ, अठारह, चौदह पल्योपम तक तथा पल्योपमपृथक्त्व रह सकता है / जघन्य से एक समय तक रह सकता है। पुरुषवेदक, पुरुषवेदक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व तक रह सकता है। नपुंसकवेदक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक रह सकता है / अवेदक दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित / सादि-सपर्यवसित अवेदक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रह सकता है। स्त्रीवेदक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। पुरुषवेद का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है / नपुसकवेद का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है। अवेदक का जैसा पहले कहा गया है, अन्तर नहीं अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े पुरुषवेदक, उनसे स्त्रीवेदक संख्येयगुण, उनसे अवेदक अनन्तगुण और उनसे नपुंसकवेदक अनन्तगुण हैं। विवेचन-वेद की अपेक्षा से सर्व जीवों के चार प्रकार बताये हैं-स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुसकवेदक और अवेदक / इनकी संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व यहां प्रतिपादित है। संचिटणा-स्त्रीवेदक. स्त्रीवेदक के रूप में कितना रह सकता है? इस प्रश्न में उत्तर में पांच अपेक्षाओं से पांच तरह का काला पक्षाओं से पांच तरह का कालमान बताया गया है। यह विषय विस्तार से त्रिविध प्रतिपत्ति में पहले कहा जा चुका है, फिर भी संक्षेप में यहां दे रहे हैं। स्त्रीवेद की कायस्थिति एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट 110 पल्योपम की है। कोई स्त्री उपशमश्रेणी में वेदत्रय के उपशमन से अवेदकता का अनुभव करती हुई पुनः उस श्रेणी से पतित होती हुई कम-से-कम एक समय तक स्त्रीवेद के उदय को भोगती है। द्वितीय समय में वह मरकर देवों में उत्पन्न हो जाती है, वहां उसको पुरुषवेद प्राप्त हो जाता है / अतः उसके स्त्रीवेद का काल एक समय का घटित होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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