Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 712
________________ सर्वजीवाभिगम [201 सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमभहियाई / पम्हलेस्से गं जह. अंतो० उक्को० दस सागरोवमाइं अंतोमुहत्तमम्महियाई / सुक्कलेस्से णं भंते !? जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तमम्महियाई / अलेस्से णं भंते !.? साइए अपज्जवसिए। ___ कण्हलेसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतो० उक्को. तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमम्माहियाई / एवं नीललेसस्सवि, काउलेसस्सवि / तेउलेसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ० ? जहन्नेणं अंतो० उक्को० वणस्सइकालो। एवं पम्हलेसस्सवि सुक्कलेसस्सवि, दोण्हवि एवमंतरं / प्रलेसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! साइयस्स अपज्जवसियस्स णस्थि अंतरं। एएसि गं भंते ! जीवाणं कण्हलेसाणं नीललेसाणं काउलेसाणं तेउलेसाणं पम्हलेसाणं सुक्कलेसाणं अलेसाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? गोयमा ! सम्वत्थोवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुण, अलेस्सा प्रणंतगुणा, काउलेस्सा अणंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया। सेत्तं सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता। 253. अथवा सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं—कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले, तेजोलेश्या वाले, पद्मलेश्या वाले, शुक्ललेश्या वाले और अलेश्य / भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला, कृष्णलेश्या वाले के रूप में काल से कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक रह सकता है। भगवन् ! नीललेश्या वाला उस रूप में कितने समय तक रह सकता है, गौतम ! जघन्य अन्तम हर्त और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्येयभाग अधिक दस सागरोपम तक रह सकता है। कापोतलेश्या वाला जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पल्योपमासंख्येयभाग अधिक तीन सागरोपम रहता है / तेजोलेश्या वाला जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से पल्योपमासंख्येयभाग अधिक तीन सागरोपम तक रह सकता है / पद्मलेश्या वाला जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से पल्योपमासंख्येयभाग अधिक दस सागरोपम तक रहता है। शुक्ललेश्या वाला जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक रह सकता है। अलेश्य जीव सादि-अपयंवसित है, अतः सदा उसी रूप में रहते हैं। भगवन् ! कृष्णलेश्या का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम का है। इसीतरह नीललेश्या, कापोतलेश्या का भी जानना चाहिए / तेजोलेश्या का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है / इसीप्रकार पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या-दोनों का यही अन्तर है / भगवन् ! अलेश्य का अन्तर कितना है ? गौतम ! अलेश्य जीव सादि-अपर्यवसित होने से अन्तर नहीं है। भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले और अलेश्यों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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