Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 703
________________ 192] [जीवाजोवाभिगमसूत्र 247. अहवा चउब्धिहा सव्वजीवा पणत्ता, तं जहा–संजया असंजया संजयासंजया नोसंजया-नोअसंजया-नोसंजयासंजया। संजए णं भंते! * ? जहन्नणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुष्यकोडी। असंजया जहा अण्णाणी / संजयासंजए जहन्नणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुश्वकोडी / नोसंजय-नोअसंजय यासंजए साइए अपज्जवसिए। संजयस्स संजयासंजयस्स दोण्हवि अंतरं जहण्णणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं प्रवड्ढं पोग्गलपरियट देसूणं / असंजयस्स आदि दुबे णत्थि अंतरं। साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुग्यकोडी / चउत्थगस्स णस्थि अंतरं / अप्पाबहुयं-सम्वत्थोवा संजया, संजयासंजया असंखेज्जगुणा, णोसंजय-णोअसंजय-णोसंजयासंजया अणंतगुणा, प्रसंजया अणंतगुणा। सेत्तं चम्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता / 247. अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-संयत, असंयत, संयतासंयत और नोसंयतनोअसंयत-नोसंयतासंयत / भगवन् ! संयत, संयतरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रहता है। असंयत का कथन अज्ञानी की तरह कहना / संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि / नोसंयतनोप्रसंयत-नोसंयतासंयत सादि-अपर्यवसित है। ___ संयत और संयतासंयत का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त है / असंयतों के तीन प्रकारों में से आदि के दो प्रकारों में अन्तर नहीं है / सादि-सपर्यवसित असंयत का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि है। चौथे नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत का अन्तर नहीं है। ___अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े संयत हैं, उनसे संयतासंयत असंख्येयगुण हैं, उनसे नोसंयत-नोअसंयतनोसंयतासंयत अनन्तगुण हैं और उनसे असंयत अनन्तगुण हैं। इस प्रकार सर्व जीवों की चतुर्विध प्रतिपत्ति पूरी हुई। विवेचन-संयत, असंयत को लेकर सर्व जीवों के चार प्रकार इस सूत्र में बताकर उनकी कायस्थिति, अन्तर तथा अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। सर्व जीव चार प्रकार के हैं-१. संयत, 2. असंयत, 3. संयतासंयत और 4. नोसंयतनोप्रसंयत-नोसंयतासंयत / कायस्थिति संयत, संयत के रूप में जघन्य एक समय तक रह सकता है। सर्वविरति परिणाम के अनन्तर समय में किसी का मरण भी हो सकता है, इस अपेक्षा से जघन्य एक समय कहा गया है / उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि तक रह सकता है। असंयत तीन प्रकार के हैं—अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित / अनादि-अपर्यवसित असंयत वह है जो कभी संयम नहीं लेगा। अनादि-सपर्यवसित असंयत वह है जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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