Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 684
________________ सर्वजोवाभिगम] [173 छत्तीस (65536) क्षुल्लकभव होते हैं / ' एक मुहूर्त में तीन हजार सात सौ तिहत्तर (3773) पानप्राण (श्वासोच्छ्वास) होते हैं।' त्रैराशिक से एक उच्छ्वास में सत्रह क्षुल्लकभव प्राप्त होते हैं। पैंसठ हजार पांच सौ छत्तीस में तीन हजार सात सौ तिहत्तर का भाग देने से एक उच्छ्वास में भवों की संख्या प्राप्त होती है। उक्त भाग देने से 17 भव और 1394 शेष बचता है, जिसकी प्रावलिकाएं कुछ अधिक 94 होती हैं। यदि हम एक पानप्राण में प्रावलिकाओं की संख्या जानना चाहते हैं तो 256 में 17 का गुणा करके उसमें ऊपर की 94 प्रावलिकाएं मिलानी चाहिए, तो 4446 श्रावलिकाएं होती हैं। यदि एक मुहूर्त में प्रावलिकाओं की संख्या जानना चाहते हैं तो इन 4446 एक श्वासोच्छवास की प्रावलिकाओं को एक मुहूर्त के श्वासोच्छ्वास 3773 से गुणा करने से 1,67,74,758 प्रावलिका होती हैं / इसमें साधिक की 2458 प्रावलिकाएं मिलाने से 1,67,77,216 आवलिकाएं एक मुहूर्त में होती हैं। अथवा मुहूर्त के 65536 क्षुल्लकभवों को एक भव की 256 श्रावलिकाओं से गुणा करने . पर एक मुहूर्त में प्रावलिकाओं की संख्या ज्ञात हो जाती है। इसलिए जो कहा जाता है कि एक उच्छ्वास-निःश्वास में संख्येय प्रावलिकाएं हैं, सो समीचीन ही है / 235. अहवा दुविहा सव्वजोवा पण्णता, तं जहा सभासगा य अभासगा य / सभासए णं भंते ! सभासएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुत्तं / अभासए णं भंते ! 0? गोयमा! अभासए दुविहे पण्णत्ते-साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए / तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहण्णणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतकालं-अणंता उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीप्रो वणस्सइकालो / भासगस्स णं भंते ! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा! जहणणं अंतोमुहत्त उक्कोसेणं प्रणंतकालं वणस्सइकालो / अभासगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स गस्थि अंतरं। साइय-सपज्जवसियस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्त / अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा भासगा, अभासगा अणंतगुणा / अहवा दुविहा सध्वजीवा ससरीरी य असरीरी य / असरोरी जहा सिद्धा / ससरीरी जहा असिद्धा। थोवा असरीरी, ससरीरी अणंतगुणा।। 235. अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-सभाषक और अभाषक / भगवन् ! सभाषक, सभाषक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त / 1. पन्नद्विसहस्साइं पंचेव सया हवंति छत्तीसा। खुड्डामभवग्महणा हवंति अंतोमुहुत्तम्मि / / 2. तिनि सहस्सा सत्त य सयाइ तेवत्तरि च ऊसासा / एस मुहत्तो भणियो, सबेहि अणंतणाणीहिं / / 3. एगा कोडी सत्तट्ठि लक्ख सत्ततरी सहस्सा य / दोयसया सोलहिया आवलिया मुहुत्तम्मि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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