________________ 182] [जीवाजीवाभिगमसूत्र और उत्कर्ष से असंख्येयकाल अर्थात् पृथ्वीकाल तक रहता है / बादर, बादर के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्येयकाल तक रहता है / यह असंख्येयकाल असंख्येय उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप है कालमार्गणा से / क्षेत्रमार्गणा से अंगुल का असंख्येयभाग है। नोसूक्ष्म-नोबादर सादि-अपर्यवसित हैं / सूक्ष्म का अन्तर बादरकाल है और बादर का अन्तर सूक्ष्मकाल है। तीसरे नोसूक्ष्म-नोबादर का अन्तर नहीं है / अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े नोसूक्ष्म-नोबादर हैं, उनसे बादर अनन्तगुण हैं और उनसे सूक्ष्म असंख्येयगुण हैं। विवेचन--सूक्ष्म और बादर को लेकर तीन प्रकार के सर्व जीव कहे हैं—सूक्ष्म, बादर और नोसूक्ष्म-नोबादर / इन तीनों की कायस्थिति, अन्तर तथा अल्पबहुत्व इस सूत्र में बताया है। ___ कायस्थिति सूक्ष्म की कायस्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। उसके बाद पुनः बादरों में उत्पत्ति हो सकती है। उत्कर्ष से कायस्थिति असंख्येयकाल है। यह असंख्येयकाल असंख्येय उत्सर्पिणीअवसर्पिणो रूप है कालमार्गणा से, क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाश के प्रदेशों के प्रति-समय एक-एक के अपहारमान से निर्लेप होने के काल के बराबर है / यही पृथ्वीकाल कहा जाता है। बादर की कायस्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। इसके बाद कोई जीव पुनः सूक्ष्मों में चला जाता है। उत्कर्ष से असंख्येयकाल है / यह असंख्येयकाल असंख्येय उत्सपिणी-अवसर्पिणी रूप हैं कालमार्गणा से, क्षेत्रमार्गणा से अंगुलासंख्येयभाग है। अर्थात् अंगुलमात्र क्षेत्र के असंख्येयभागवर्ती आकाश-प्रदेशों के प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार किये जाने पर निर्लेप होने के काल के बराबर है। इतने समय के बाद संसारी जीव सूक्ष्मों में नियमतः उत्पन्न होता है। नोसूक्ष्म-नोबादर सिद्ध जीव हैं, सादि-अपर्यवसित होने से सदा उसी रूप में बने रहते हैं / अन्तरद्वार-सूक्ष्म का अन्तर जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल है। यह असंख्येयकाल अंगुलासंख्येयभाग है / बादरकाल इतना ही है। बादर का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल है। यह असंख्येयकाल क्षेत्र से असंख्येय लोकप्रमाण है / सूक्ष्मकाल इतना नोसूक्ष्म-नोबादर का अन्तर नहीं है, क्योंकि वह सादि-अपर्यवसित है / अपर्यवसित होने से अन्तर नहीं होता / ___ अल्पबहुत्वद्वार--सबसे थोड़े नोसूक्ष्म-नोबादर हैं, क्योंकि सिद्धजीव अन्य जीवों की अपेक्षा अल्प हैं / उनसे बादर अनन्तगुण हैं, क्योंकि बादरनिगोद जीव सिद्धों से भी अनन्तगुण हैं, उनसे सूक्ष्म असंख्येयगुण हैं क्योंकि बादरनिगोदों से सूक्ष्मनिगोद असंख्यातगुण हैं। 241. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णता, तं जहा–सण्णी, असण्णी, नोसण्णी-नोअसणी। सण्णी णं भंते ! कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोदमसयपुहत्तं साइरेगं / असण्णी जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो / नोसण्णीनोअसण्णी साहए.अपज्जवसिए। ___सण्णिस्स अंतरं जहण्णणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं बणस्सइकालो। असण्णिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेगं, तइयस्स पत्थि अंतरं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org