________________ 170 [जीवाजीवाभिगमसूत्र गौतम ! जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से असंख्येय काल तक यावत् क्षेत्र की अपेक्षा अंगल का असंख्यातवां भाग। केवलि-पाहारक यावत् काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि / भगवन् ! अनाहारक यावत् काल से कितने समय तक रहता है ? गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के हैं-छद्मस्थ-अनाहारक और केवलि-अनाहारक / भगवन् ! छद्मस्थ-अनाहारक उसी रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट दो समय तक / केवलि-अनाहारक दो प्रकार के हैं-- सिद्धकेवलि-अनाहारक और भवस्थकेवलि-अनाहारक / भगवन् ! सिद्धकेवलि-अनाहारक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! वह सादि-अपर्यवसित है। भगवन् ! भवस्थकेवलि-अनाहारक कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के हैं-सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक और अयोगि-भवस्थकेवलिअनाहारक। भगवन् ! सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? जघन्य उत्कृष्ट रहित तीन समय तक। अयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त / भगवन् ! छद्मस्थ-पाहारक का अन्तर कितना कहा गया है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय / केवलि-ग्राहारक का अन्तर जघन्यउत्कृष्ट रहित तीन समय / अनाहारक का अंतर जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से असंख्यात काल यावत् अंगुल का असंख्यातभाग / सिद्धकेवलि-अनाहारक सादि-अपर्यवसित है अतः अन्तर नहीं है। सयोगिभवस्थकेवलिअनाहारक का जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट से भी यही है।। अयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक का अन्तर नहीं है। भगवन् ! इन आहारकों और अनाहारकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े अनाहारक हैं, उनसे आहारक असंख्येयगुण हैं। __विवेचन-आहारक और अनाहारक को लेकर प्रस्तुत सूत्र में सर्व जीवों के दो प्रकार बताये हैं / विग्रहगतिसमापन्न, केवलिसमुद्घात वाले केवली, अयोगी केवली और सिद्धये ही अनाहारक हैं, शेष जीव आहारक हैं।' 1. विग्गहराइमावन्ना केवलिणो समूहया अजोगी या / सिद्धा य प्रणाहारा, सेसा पाहारगा जीवा // For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.