________________ दशविधाख्या नवम प्रतिपत्ति 229. तत्थ णं जेते एवमाहंसु 'दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एक्माहंसु, तं जहा-- 1. पढमसमयएगिदिया 2. अपढमसमयएगिदिया 3. पढमसमयबेइंदिया 4. अपढमसमयबेइंदिया 5. पढमसमयतेहंदिया 6. अपढमसमयतेइंदिया 7. पढमसमयचउरिदिया . अपढमसमयचरिदिया 9. पढमसमयपचिदिया। 10. अपढमसमयचिदिया। पढमसमयएगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं एक्क समयं, उक्कोसेणवि एक्कं समयं / अपढमसमयएगिदियस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समय-ऊणं, उक्कोसेणं बावीसंवाससहस्साई समय-ऊणाई। एवं सव्वेसि पढमसमयिकाणं जहणणं एवको समायो, उक्कोसेणं एक्को समओ। अपढमसमयिकाणं जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समय-ऊणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिई सा समय-ऊणा जाव पंचिदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समय-ऊणाई। संचिट्ठणा पढमसमइयस्स जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं एक्कं समयं / अपढमसमयिकाणं जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समय-ऊणं, उक्कोसेणं एगिदियाणं वणस्सइकालो। बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं संखेज्जकालं / पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं / 229. जो आचार्यादि दस प्रकार के संसारसमापनक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, वे उन जीवों के दस प्रकार इस तरह कहते हैं१. प्रथमसमयएकेन्द्रिय 2. अप्रथमसमयएकेन्द्रिय 3. प्रथमसमयद्वीन्द्रिय 4. अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय 5. प्रथमसमयत्रीन्द्रिय 6. अप्रथमसमय त्रीन्द्रिय 7. प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय 8. अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय 9. प्रथमसमयपंचेन्द्रिय 10. अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय / भगवन् ! प्रथमसमयएकेन्द्रिय की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय है। अप्रथमसमयएकेन्द्रिय की जघन्य एक समय कम क्षुल्लक-भवग्रहण और उत्कर्ष से एक समय कम बावीस हजार वर्ष / इस प्रकार सब प्रथमसमयिकों की जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से भी एक समय की स्थिति कहनी चाहिए। अप्रथमसमय वालों की स्थिति जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभव और उत्कर्ष से जिसकी जो स्थिति कही गई है, उसमें एक समय कम करके कथन करना चाहिए यावत् पंचेन्द्रिय की एकसमय कम तेतीस सागरोपम की स्थिति है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org