Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 668
________________ दशविधाख्या नवम प्रतिपत्ति [157 प्रथमसमयवालों की संचिटणा (कायस्थिति) जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से भी एक समय है / अप्रथमसमयवालों की जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से एकेन्द्रियों की वनस्पतिकाल और द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियों की संखेयकाल एवं पंचेन्द्रियों की साधिक हजार सागरोपम पर्यन्त संचिट्ठणा (कायस्थिति) है। 230. पढमसमयएगिबियाणं केवइयं अंतर होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समय-ऊणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपढमसमयएगिदियाणं अंतरं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमन्भहियाई। _सेसाणं सब्वेसि पढमसमयिकाणं अंतरं जहणणं दो खुड्डाइं भवग्गहणाई समय-ऊणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो / अपढमसमयिकाणं सेसाणं जहण्णणं खड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। पढमसमयाणं सब्वेसि सम्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, पढमसमयचरिदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिसा, पढमसमयबेइंदिया विसेसाहिया, पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया। एवं अपढमसमयिकाविणारं अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा। दोण्हं अप्पवयं-सव्यस्थोवा पढमसमयएगिदिया, अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा / सेसाणं सम्वत्थोवा पढमसमयिका, अपढमसमयिका असंखेज्जगुणा / एएसि णं भंते ! पढमसमयएगिदियाणं अपढमसमयएगिदियाणं जाव अपढमसमयचिदियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुमावा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा पलमसमयचिदिया, पढमसमयचरिदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेईदिया विसेसाहिया एवं हेट्ठामुहा जाव पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया, अपढमसमयपंचिदिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयचरिदिया विसेसाहिया जाव अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा / सेत्तं वसविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। सेत्तं संसारसमावण्णगजीवाभिगमे। 230. भगवन् ! प्रथमसमयएकेन्द्रियों का अन्तर कितना होता है ? गौतम ! जघन्य से समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है / अप्रथमसमयएकेन्द्रिय का जघन्य अन्तर एकसमय अधिक एक क्षुल्लकभव है और उत्कर्ष से संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है। शेष सब प्रथमसमयिकों का अन्तर जघन्य से एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है / शेष अप्रथमसमयिकों का जघन्य अन्तर समयाधिक एक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। सब प्रथमसमयिकों में सबसे थोड़े प्रथमसमय पंचेन्द्रिय हैं, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार अप्रथमसमयिकों का अल्पबहुत्व भी जानना चाहिए। विशेषता यह है कि अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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