________________ अष्टविधाख्या सप्तम प्रतिपत्ति 226. तत्य णं जेते एवमाहंसु-'अटुविहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसुपढमसमयनेरइया, अपढमसमयनेरइया, पढमसमयतिरिक्खजोणिया, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया, पढमसमयमणुस्सा, अपढमसमयमणुस्सा, पढमसमयदेवा, अपढमसमयदेवा / पढमसमयनेर इयस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं एक्कं समयं / अपढमसमयनेरइयस्स जहन्नेणं दसवाससहस्साई समय-उणाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समय-उणाई। पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं एक्कं समयं / अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समय-उणं, उक्कोसेणं तिण्णिपलिओवमाइं समय-उणाई। एवं मणुस्साणवि जहा तिरिक्खजोणियाणं / देवाणं जहा परइयाणं ठिई। णेरइय-देवाणं जा चेव ठिई सा चेव संचिट्ठणा दुविहाणवि / पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते / पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालमो केवचिरं होई ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणवि एक्कं समयं / अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समय-ऊण, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।। पढमसमयमणुस्साणं जहन्नेणं उक्कोसेण य एक्कं समयं / अपढमसमयमणुस्साणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समय-ऊणं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिग्रोवमाई पुवकोडिपुहुत्तमभहियाई समय-ऊणाई। 226. जो प्राचार्यादि ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव आठ प्रकार के हैं, उनके अनुसार ये पाठ प्रकार इस तरह हैं—१. प्रथमसमयनैरयिक, 2 अप्रथमसमयनैरयिक, 3. प्रथमसमयतिर्यगयोनिक, 4. अप्रथमसमयतिर्यग्यो निक, 5. प्रथमसमयमनुष्य, 6. अप्रथमसमयमनुष्य, 7. प्रथमसमयदेव और 8. अप्रथमसमयदेव / स्थिति-भगवन् ! प्रथमसमयनै रयिक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से भी एक समय / अप्रथमसमयनैरयिक की जघन्य स्थिति एक समय कम दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से एक समय कम तेतीस सागरोपम की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org