________________ सप्तविधाख्या षष्ठ प्रतिपत्ति] [147 अल्पबहुत्व-सबसे थोड़ी मनुष्यस्त्रियां हैं, क्योंकि वे कतिपय कोटिकोटिप्रमाण हैं। उनसे मनुष्य असंख्येयगुण हैं, क्योंकि सम्मूछिम मनुष्य श्रेणी के असंख्येयप्रदेशराशिप्रमाण हैं / उनसे तिर्यंचस्त्रिया असंख्येयगुण हैं, क्योंकि महादण्डक में जलचर तिर्यक्योनिकियों से वान-व्यन्तर-ज्योतिष्क देव भी संख्येयगुण कहे गये हैं। उनसे देवियां असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे देवों से बत्तीस गुणी हैं। उनसे तिर्यंच अनन्तगुण हैं, क्योंकि वनस्पतिजीव अनन्त हैं / ' 00 // इति षष्ठ प्रतिपत्ति // 1. "बत्तीसगुणा बत्तीसरूव-अहियायो होंति देवाणं देवीमो" इति वचनात् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org