________________ षविधाख्या पंचम प्रतिपत्ति] [11 एवं णिोदजीवा नवविहावि पएसट्टयाए सव्वे अणंता / 223. भगवन् ! निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं हैं, असंख्यात हैं, अनन्त नहीं हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त और अपर्याप्त सूत्र भी कहने चाहिए। भगवन् ! सूक्ष्मनिगोद द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात हैं, अनन्त नहीं। इसी तरह पर्याप्त विषयक सूत्र तथा अपर्याप्त विषयक सूत्र भी कहने चाहिए। इसी प्रकार बादरनिगोद के विषय में भी कहना चाहिए। उनके पर्याप्त विषयक सूत्र तथा अपर्याप्त विषयक सूत्र भो इसी तरह कहने चाहिए / भगवन् ! निगोदजीव द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, अनन्त हैं। इसी तरह इसके पर्याप्तसूत्र भी जानने चाहिए / इसी प्रकार सक्ष्मनिगोदजीव, इनके पर्याप्त और अपर्याप्तसत्र तथा बादर उनके पर्याप्त और अपर्याप्तसूत्र भी कहने चाहिए। (ये द्रव्य की अपेक्षा से 9 निगोद के तथा 9 निगोदजीव के कुल अठारह सूत्र हुए।) भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा निगोद संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं। इसी प्रकार पर्याप्तसूत्र और अपर्याप्तसूत्र भी कहने चाहिए। इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोद और उनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूत्र कहने चाहिए / ये सब प्रदेश की अपेक्षा अनन्त हैं। इसी प्रकार बादरनिगोद के और उनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूत्र कहने चाहिए। ये सब प्रदेश की अपेक्षा अनन्त हैं। इसी प्रकार निगोदजीवों के प्रदेशों की अपेक्षा से नो ही सूत्रों में अनन्त कहना चाहिए। विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में निगोद और निगोदजीवों की संख्या के विषय में जिज्ञासा और उत्तर है। जिज्ञासा प्रकट की गई है कि निगोद संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं? इन प्रश्नों के उत्तर दो अपेक्षाओं से हैं--द्रव्य की अपेक्षा और प्रदेश की अपेक्षा से / द्रव्य की अपेक्षा से निगोद संख्येय नही हैं, क्योंकि अंगुलासंख्येयभाग अवगाहना वाले निगोद सारे लोक में व्याप्त हैं। वे असंख्यात हैं, क्योंकि असंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाण हैं। वे अनन्त नहीं हैं, क्योंकि केवलज्ञानियों ने उन्हें अनन्त नहीं जाना है / सामान्यनिगोद, अपर्याप्त सामान्यनिगोद और पर्याप्त सामान्य निगोद संबंधी तीन सूत्र इसी तरह जानने चाहिए / इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोद के तीन सूत्र और बादरनिगोद के भी तीन सूत्र---कुल नौ सूत्र कहे गये हैं। निगोदजीव द्रव्य की अपेक्षा से संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं / प्रतिनिगोद में अनन्तजीव होने से निगोदजीव द्रव्यापेक्षया अनन्त हैं। इसी तरह इनके अपर्याप्तसूत्र और पर्याप्तसूत्र में भी अनन्त कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org