________________ षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति] [139 सूक्ष्मों में अपर्याप्त थोड़े और पर्याप्त संख्येयगुण हैं और बादरों में पर्याप्त थोड़े और अपर्याप्त असंख्यातगुण हैं। (5) पांचवां अल्पबहुत्व इन सबका समुदित रूप में कहा गया है / वह इस प्रकार है सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर त्रसकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादरनिगोद पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्येय गुण, उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादरनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वायुकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त संख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म निगोद पर्याप्त संख्येयगुण / (ये बादर पर्याप्त तेजस्काय से लेकर पर्याप्त निगोद तक के जीव यद्यपि अन्यत्र समान रूप से असंख्येय लोकाकाश के प्रदेश प्रमाण कहे हैं, तथापि असंख्यात के असंख्यात भेद होने से यहां जो कहीं असंख्येयगुण, संख्येयगुण और विशेषाधिक कहे हैं, उनमें कोई विरोध नहीं समझना चाहिए।) उन पर्याप्त सूक्ष्म निगोदों से बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त अनन्तगुण हैं / उनसे सामान्य बादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं,उनसे सामान्य बादर अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनसे सामान्यतः बादर विशेषाधिक हैं, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, उनसे सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त संख्येयगुण हैं, उनसे सामान्य सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, उनसे सामान्य पर्याप्त-अपर्याप्त विशेषण रहित सूक्ष्म विशेषाधिक हैं। निगोद को वक्तव्यता - 222. कतिविहा गं भंते ! णिपोया पण्णता ? गोयमा ! दुविहा णिपोया पण्णत्ता, तं जहा-णिओया य णिनोदजीवा य / णिओया णं भंते ! कतिविहा पण्णता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहमणिओदा य बादरणिओदा य / सुहमणिपोया णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य / बायरणिओयावि दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य / णिोदजीवा णं भंते ! कतिविहा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहमणिगोदजीवा य बादरणिगोयजीवा य। सुहमणिगोदजीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जतगा य / बायरणिगोदजीवा दुविहा पण्णता, तं जहा—पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org