________________ 135] [जीवाजीवाभिगमसूत्र कायिक अनन्तगुण हैं, उनसे बादर विशेषाधिक हैं, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक असंख्येयगुण हैं, उनसे (सामान्य) सूक्ष्म विशेषाधिक हैं / (2) द्वितीय अल्पबहुत्व इनके ही अपर्याप्तकों को लेकर है / वह इस प्रकार है सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक अपर्याप्त, उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येय गुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादरनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अपकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वायुकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म अपकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्त असंख्येय गुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त अनन्तगुण, उनसे सामान्य बादर अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्त विशेषाधिक हैं। (3) तीसरा अल्पबहुत्व इनके ही पर्याप्तकों को लेकर कहा गया है / वह इस प्रकार है सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादरनिगोद पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीका यिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्त असंख्येय गुण, उनसे बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक पर्याप्त असंख्येय गुण, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त अनन्तगुण, उनसे सामान्य बादर पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे सामान्य सक्षम पर्याप्त विशेषाधिक हैं। (4) चौथा अल्पबहुत्व इन प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्तों के सम्बन्ध में है। वह इस प्रकार है सबसे थोड़े बादर पर्याप्त हैं, क्योंकि ये परिमित क्षेत्रवर्ती हैं। उनसे बादर अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि प्रत्येक बादर पर्याप्त की निश्रा में असंख्येय बादर अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं / उनसे सूक्ष्म अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे सर्वलोकव्यापी होने से उनका क्षेत्र असंख्येयगुण है / उनसे सूक्ष्म पर्याप्त संख्येयगुण हैं, क्योंकि चिरकाल-स्थायी होने से ये सदैव संख्येयगुण प्राप्त होते हैं। __ सब संख्या में यहां सात सूत्र हैं--१. सामान्य से सूक्ष्म-बादर पर्याप्त-अपर्याप्त विषयक, 2. सूक्ष्म-बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तापर्याप्तविषयक, 3. सूक्ष्म-बादर अप्कायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक, 4. सूक्ष्म-बादर तेजस्कायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक, 5. सूक्ष्म-बादर वायुकायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक, 6. सूक्ष्म-बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तापर्याप्त विषयक और 7. सूक्ष्म-बादर निगोद पर्याप्तापर्याप्त विषयक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org