Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 647
________________ 136] [जीवाजीवाभिगमसूत्र अपर्याप्तों से पर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि एक बादरपर्याप्त की निश्रा में असंख्येय बादर-अपर्याप्त पैदा होते हैं।' (5) पांचवां अल्पबहुत्व छह कायों के पर्याप्त और अपर्याप्तों का समुदित रूप से कहा गया है / वह निम्न है सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर प्रत्येकवनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुण,उनसे बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण / (उक्त पदों की युक्ति पूर्ववत् जाननी चाहिए।) ___ उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्येयलोकाकाशप्रदेश के प्राकाशप्रदेशों के तुल्य हैं, किन्तु बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाण हैं। असंख्यात के असंख्यात भेद होने से यह असंख्यात पूर्व के असंख्यात से असंख्येयगुण जानना चाहिए। बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त से प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद, बादर पृथ्वीकायिक, बादर अपकायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त यथोत्तर असंख्येयगुण कहने चाहिए / बादर वायुकायिक अपर्याप्तों से बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त अनन्तगुण हैं, क्योंकि एक-एक बादर निगोद में अनन्त जीव हैं। उनसे सामान्य बादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि बादर तेजस्कायिक आदि पर्याप्तों का उनमें प्रक्षेप होता है / उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि एक-एक पर्याप्त बादर बनस्पतिकायिक निगोद की निश्रा में असंख्येय अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक निगोद उत्पन्न होते हैं। उनसे सामान्य बादर अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि उनमें बादर तेजस्कायिक आदि अपर्याप्तों का प्रक्षेप है। उनसे पर्याप्त-अपर्याप्त विशेषण रहित सामान्य बादर विशेषाधिक हैं, क्योंकि इनमें सब बादर पर्याप्त-अपर्याप्तों का समावेश हो जाता है। इस प्रकार वादर को लेकर पांच अल्पबहुत्व कहे हैं / सूक्ष्म-बादरों के समुदित अल्पबहुत्व 221 (आ) (1) एएसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहमपुढविकाइयाणं जाव सुहमणिगोयाणं बायराणं बादरपुढविकाइयाणं जाव बादरतसकाइयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा० ? ___गोयमा ! सव्वत्थोवा बायरतसकाइया, बायरतेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा तहेव जाव बायरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउक्काइया असंखज्जगुणा, सुहमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहम पाउ० सुहम वाउ० विसेसाहिया, सुहमनिगोया असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सइकाइया अणंतगुणा, बायरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमा विसेसाहिया। 1. "पज्जत्तगनिस्साए अपज्जत्तगा बक्कमंति, जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा" इति वचनात् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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