________________ 142] [जीवाजीवाभिगमसूत्र इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोदजीव और उनके अपर्याप्त और पर्याप्त विषयक तीनों सूत्रों में भी अनन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार बादरनिगोदजीव और उनके अपर्याप्त और पर्याप्त विषयक तीन सूत्रों में भी अनन्त कहने चाहिए / उक्त वर्णन द्रव्य की अपेक्षा से हुआ। प्रदेशों की अपेक्षा से निगोद और निगोदजीवों के सामान्य तथा अपर्याप्त और पर्याप्त तथा सूक्ष्म और बादर सब अठारह ही सूत्रों में अनन्त कहना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक निगोद में अनन्त प्रदेश होते हैं / ये अठारह सूत्र इस प्रकार कहे हैं निगोद के 9 तथा निगोदजीवों के 9, कुल 18 हुए / निगोद के 9 सूत्र-निगोदसामान्य, निगोद-अपर्याप्त, निगोद-पर्याप्त ; सूक्ष्मनिगोदसामान्य, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त, सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त; बादरनिगोदसामान्य, बादरनिगोद अपर्याप्त और बादरनिगोद पर्याप्त / निगोदजीव के 9 सूत्र-निगोदजीवसामान्य, निगोदजीव अपर्याप्तक और निगोदजीव पर्याप्तक। सूक्ष्मनिगोदजीव सामान्य और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त / बादरनिगोदजीव और इनके अपर्याप्त और पर्याप्त / कुल अठारह सूत्र प्रदेशापेक्षया हैं। निगोदों का अल्पबहुत्व 224. (प्र) एएसि णं भंते ! णिगोदाणं सुहमाणं बायराणं पज्जत्तयाणं अपज्जत्तगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वपएसठ्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा बायरणिगोदा पज्जत्तगा दवठ्ठयाए, बादरनिगोदा अपज्जत्तगा दव्बठ्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहमनिगोदा अपज्जत्तगा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमनिगोदा पज्जत्तगा दम्वद्र्याए संखेज्जगुणा, एवं पएसठ्ठयाएवि। दव्वपएसठ्ठयाए-सम्वत्थोवा बायरणिगोदा पज्जत्ता दब्बठ्ठयाए जाव सुहमणिनोदा पज्जत्ता दन्बठ्ठयाए संखेज्जगुणा / सुहमणिगोदेहित्तो पज्जतएहितो दन्वट्ठयाए बायरनिगोदा पज्जत्ता पएसठ्ठया अणंतगुणा, बायरणिओदा अपज्जत्ता पएसठ्ठयाए असंखेज्जगुणा जाव सुहमणिपोया पज्जत्ता पएसट्टयाए संखेज्जगुणा। एवं णिगोदजीवावि / णवरि संकमए जाव सुहमणिओयजीवेहितो पज्जत्तएहितो दवट्टयाए बायरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सेसं तहेव जाव सुहमणिओदजीवा पज्जत्ता पएसट्ठयाए संखेज्जगुणा / 224 (अ) भगवन् ! इन सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त निगोदों में द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेश की अपेक्षा तथा द्रव्य-प्रदेश की अपेक्षा से कौन किससे कम, बहत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से--सबसे थोड़े बादरनिगोद (मूल-कन्दादिगत) पर्याप्तक हैं (क्योंकि ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org