________________ 134] [जीवाजीवाभिगमसूत्र (2) अपर्याप्त बादरों का अल्पबहुत्व प्रौघिकसूत्र के अनुसार हो जानना चाहिए-जैसे सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक अपर्याप्त, उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण इत्यादि औधिक क्रम। (3) पर्याप्त बादरों का अल्पबहुत्व--- सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद पर्याप्तक असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वायुकाय पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त अनन्तगुण, उनसे बादर पर्याप्तक विशेषाधिक। (4) प्रत्येक के बादर पर्याप्त-अपर्याप्तों का अल्पबहुत्व (सब जगह) पर्याप्त बादर थोडे हैं और बादर अपर्याप्तक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि एक बादर पर्याप्त की निश्रा में असंख्येय बादर अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं। (सब सूत्रों का कथन बादर सकायिकों की तरह है / ) (5) सबका समुदित अल्पबहुत्व भगवन् ! बादरों में बादर पृथ्वीकाय यावत् बादर सकाय के पर्याप्तों और अपर्याप्तों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्तक, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्तक असंख्येयगुण, उनसे बादर असकायिक अपर्याप्त असंख्यातगुण, उनसे प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंखेयगुण, उनसे बादर निगोद पर्याप्तक असंखेयगुण, उनसे पृथ्वी-अप-वायुकाय पर्याप्तक क्रमशः असंख्यातगुण, उनसे बादर तेजस्काय अपर्याप्तक असंख्यगण, उनसे प्रत्येकशरीर बादर वनस्पति अपर्याप्त असंखेयगुण, उनसे बादरनिगोद अपर्याप्तक असंखेयगुण, उनसे बादर पृथ्वी-अपवायुकाय अपर्याप्तक असंखेयगुण, उनसे बादर वनस्पति पर्याप्तक अनन्तगुण, उनसे बादर पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे बादर वनस्पति अपर्याप्त असंख्यगुण, उनसे बादर अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे बादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं। विवेचन-सर्वप्रथम षटकाय का प्रोधिक अल्पबहत्व बताया है। वह इस प्रकार है-सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक हैं, क्योंकि द्वीन्द्रिय आदि ही बादर त्रस हैं और वे शेष कायों की अपेक्षा अल्प हैं / उनसे बादर तेजस्कायिक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे असंख्येय लोकाकाशप्रदेशप्रमाण हैं। उनसे प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि इनके स्थान असंख्येयगुण हैं / ' बादर 1. तथा चोक्तं प्रज्ञापनायां द्वितीय स्थानाख्ये पदे-अंतोमणुस्सखेते अढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु निवाघाएण पन्न रससु कम्मभूमिसु, वाघाएणं पंचसु महाविदेहेसु एत्थ णं बायरतेउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता, तथा जत्थेव बायरतेउक्काइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णता तत्थेव अपज्जत्ताणं बायरतेउकाइयाणं ठाणा पण्णत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org