Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
________________ षड्विधासया पंचम प्रतिपत्ति] [133 के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निलिप्त हो जायें, उतना कालप्रमाण जानना चाहिए / (सूक्ष्म की जो कायस्थिति है, वही बादर का अन्तर जाना चाहिए।) शेष बादर पृथ्वीकायिक, बादर अपकायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक, प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक और बादर त्रसकायिक-इन छहों का अन्तर वनस्पतिकाल जानना चाहिए। - इसी तरह अपर्याप्तक और पर्याप्तक संबंधी दस-दस सूत्र भी ऊपर की तरह कहने चाहिए। यही बात गाथा में कही गई है-प्रोधिक, बादर वनस्पति, सामान्य निगोद और वादर निगोद का अंतर संख्येयकाल है और शेष का अन्तर वनस्पतिकाल-प्रमाण है। अल्पबहुत्वद्वार 221. (अ) (1) अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा बायरतसकाइया, बायरतेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया प्रसंखेज्जगुणा, बायरनिगोया असंखेज्जगुणा, बायरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बायराउ-वाउ असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सइकाइया प्रणंतगुणा, बायरा विसेसाहिया / (2) एवं अपज्जत्तगाणवि / (3) पज्जत्तगाणं सम्वत्थोवा बायरतेउक्काइया, बायरतसकाइया असंखेज्गुणा, पत्तेयसरीरबायरा असंखेज्जगुणा, सेसा तहेव जाव बादरा विसेसाहिया। (4) एतेसि णं भंते ! बायराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा बायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा एवं सव्वे जाव बायरतसकाइया / (5) एएसिणं भंते ! बायराणं बायरपुढविकाइयाणं जाव बायरतसकाइयाण य पज्जतापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा० ? सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया पज्जत्तगा, बायरतसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरतसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तैयसरीरबायरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरणिओया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढवि-पाउ-वाउ-पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरतेउ अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरवायरवणस्सइ अपज्जत्ता असंखेज्जगुण, बायरा णिमोदा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरपुढवि-पाउ-वाउ अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सइ अपज्जत्तगा प्रणंतगुणा, बादरपज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरवणस्सइ अपज्जत्तगा असंखगुणा, बायरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरा पज्जत्ता विसेसाहिया / 221. (अ) (1) प्रथम औधिक अल्पबहुत्व सबसे थोड़े बादर असकाय, उनसे बादर तेजस्काय असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद असंखेयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकाय असंखेयगुण, उनसे बादर अपकाय, बादर वायुकाय क्रमशः असंखेयगुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनन्त गुण, उनसे बादर विशेषाधिक / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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