Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 122] [ जीवाजीवाभिगमसूत्र इसी प्रकार अपर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे श्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक और उनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्त अनन्तगुण हैं / उनसे सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार पर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सबसे थोड़े चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे श्रीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्तक अनन्तगुण हैं / उनसे सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं। भगवन् ! इन सेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम! सबसे थोड़े से न्द्रिय अपर्याप्त, उनसे सेन्द्रिय पर्याप्त संख्येयगुण हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त का अल्पबहुत्व जानना चाहिए। भगवन् ! इन द्वीन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े द्वीन्द्रिय पर्याप्त, उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं / इसी प्रकार श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों का अल्पबहुत्व जानना चाहिए। ___ भगवन् ! इन एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्तों में कौन किससे अल्प, बहु, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्त अनन्तगुण, उनसे सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्त संख्येयगुण, उनसे सेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सेन्द्रिय विशेषाधिक / इस प्रकार पांच प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का वर्णन पूरा हुआ। विवेचन-(१) पहले एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियों का सामान्यरूप से अल्पबहुत्व बताते हुए कहा गया है--सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, क्योंकि ये पंचेन्द्रियजीव संख्यात योजन कोटी-कोटी प्रमाण विष्कंभसूची से प्रमित प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हई असंख्य श्रेणियों के प्राकाश-प्रदेशों के बराबर हैं। उनसे चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि ये प्रभूत संख्येययोजन कोटीकोटिप्रमाण विष्कभसूची के प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई श्रेणियों के आकाश-प्रदेशराशि के बराबर हैं। उनसे श्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, क्योंकि ये प्रभूततर संख्येय कोटीकोटीप्रमाण विष्कंभसची के प्रतर के असंख्येयभागगत श्रेणियों की आकाशरा शिप्रमाण हैं। उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, क्योंकि ये प्रभूततम संख्येय कोटीकोटीप्रमाण विष्कम्भसूची के प्रतरासंख्येयभागगत श्रेणियों के आकाश-प्रदेश-राशि के बराबर हैं / उनसे एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं, क्योंकि वनस्पतिकाय अनन्तानन्त हैं। (2) अपर्याप्तों का अल्पबहुत्व--सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय अपर्याप्त हैं, क्योंकि ये एक प्रतर में अंगूल के असंख्यातवें भागप्रमाण जितने खण्ड होते हैं, उतने प्रमाण में हैं। उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि ये प्रभूत अंगुलासंख्येय-भागखण्डप्रमाण हैं। उनसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि ये प्रभूततर प्रतरांगुलासंख्येयभागखण्डप्रमाण हैं। उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org