Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 638
________________ षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति] [127 अपर्याप्त पृथ्वीकायादि का अल्पबहुत्व भी उक्त प्रकार से है / पर्याप्त पृथ्वीकायादि का अल्पबहुत्व भी उक्त प्रकार ही है। भगवन् ! पृथ्वीकाय के पर्याप्तों और अपर्याप्तों में कौन किससे अल्प, बहुत, सम या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, उनसे पृथ्वीकायिक पर्याप्त संख्यातगुण / इसी तरह सबसे थोड़े अप्कायिक अपर्याप्तक, अपकायिक पर्याप्तक संख्यातगुण / इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना चाहिए / असकायिकों में सबसे थोड़े पर्याप्त त्रसकायिक, उनसे अपर्याप्त त्रसकायिक असंख्येयगुण हैं। भगवन् ! इन पृथ्वीकायिकों यावत् त्रसकायिकों के पर्याप्तों और अपर्याप्तों में समुदित रूप में कौन किससे अल्प, बहुत, सम या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े सकायिक पर्याप्तक, उनसे सकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण, पृथ्वीकायिक, अपकायिक, वायुकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे तेजस्कायिक पर्याप्त संख्येयगुण, उनसे पृथ्वी-अप-वायुकाय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक अपर्याप्त अनन्तगुण, उनसे सकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्येयगुण, उनसे सकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं। विवेचन-प्रथम अल्पबहुत्व में सामान्य से छह काय का कथन है। उसमें सबसे थोड़े त्रसका यिक हैं, क्योंकि द्वीन्द्रियादि त्रसकाय अन्य कायों की अपेक्षा अल्प हैं। उनसे तेजस्कायिक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे असंख्येय लोकाकाशप्रदेशप्रमाण हैं। उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं. क्योंकि वे प्रभूतासंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाण है, उनसे अपकायिक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रभूततरासंख्येयभाग लोकाकाशप्रदेश-राशि-प्रमाण हैं। उनसे वायुकायिक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रभूततमासंख्येयलोकाकाशप्रदेश-राशि के बराबर हैं। उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुण हैं, क्योंकि वे अनन्त लोकाकाशप्रदेश-राशि तुल्य हैं। द्वितीय अल्पबहुत्व उनके अपर्याप्त को लेकर कहा गया है। वह उक्त क्रमानुसार ही है। इनके पर्याप्तकों का अल्पबहुत्व भी उक्त क्रमानुसार ही जानना चाहिए। तृतीय अल्पबहुत्व पृथ्वीकायादि के अलग-अलग पर्याप्तों-अपर्याप्तों को लेकर कहा गया है। इसमें सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक अपर्याप्त हैं, उनसे पर्याप्त संख्येयगुण हैं। पृथ्वीकायिकों में सूक्ष्मजीव बहुत हैं, क्योंकि वे सकल लोकव्यापी हैं, उनमें पर्याप्त संख्येयगुण हैं / इसी तरह अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के सूत्र समझने चाहिए / त्रसकायिकों में सबसे थोड़े पर्याप्त त्रसकायिक हैं और अपर्याप्तक त्रसकायिक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि पर्याप्त सकायिक प्रतर के अंगुल के संख्येयभागखण्डप्रमाण हैं। ___चौथे अल्पबहुत्व में पृथ्वीकायादिकों का पर्याप्त-अपर्याप्तरूप से समुदित अल्पबहुत्व बताया गया है। वह इस प्रकार है-सबसे थोड़े सकायिक पर्याप्त, उनसे त्रसकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, कारण पहले कहा जा चुका है। उनसे तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येय गुण हैं, क्योंकि वे असंख्येय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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