Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 641
________________ 130] [जीवाजीवाभिगमसूत्र 217. एवं अप्पबहुगं-सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमाउबाउ विसेसाहिया, सुहमणिपोया असंखज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया प्रणतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया / एवं अपज्जत्तगाणं, पज्जत्तगाणं एवं चेव / एएसि गं भंते ! सुहमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा०? सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्तगा, संखेज्जगुणा पज्जतगा। एवं जाव सुहमणिगोया। एएसि णं भंते ! सुहमाणं सुहमपुढविकाइयाणं जाव सुहमणिओयाण य पजत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा० / गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तगा, सुहमपुढविकाइया अपज्जलगा विसेसाहिया, सुहमश्राउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमतेउक्काइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि-आउ-वाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमणिनोया अपज्जत्तगा असंखेज्ड जगणा, सहमणिओया पज्जत्तगा संखज्जगणा, सहमवणस्सहकाइया अपज्जतगा अणंतगुणा, सुहमा अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहमा पज्जत्ता विसेसाहिया। 217. अल्पबहुत्वद्वार इस प्रकार है-सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक क्रमशः विशेषाधिक, सूक्ष्म-निगोद असंख्येय गुण, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनन्तगुण और सूक्ष्म विशेषाधिक हैं। सूक्ष्म अपर्याप्तों और सूक्ष्म पर्याप्तों का अल्पबहुत्व भी इसी क्रम से है। भगवन् ! सूक्ष्म पर्याप्तों और सूक्ष्म अपर्याप्तों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम! सबसे थोड़े सूक्ष्म अपर्याप्तक हैं, सूक्ष्म पर्याप्तक उनसे संख्येयगुण हैं / इसी प्रकार सूक्ष्म-निगोद पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन् ! सूक्ष्मों में सूक्ष्मपृथ्वीकायिक यावत् सूक्ष्म-निगोदों में पर्याप्तों और अपर्याप्तों में समुदित अल्पबहुत्व का क्रम क्या है ? गौतम ! सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्काय अपर्याप्तक, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त संखेयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वी-अप-वायुकायिक पर्याप्त क्रमशः विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तक असंखेय गुण, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्तक संखेयगुण, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक अनन्तगुण, उनसे सूक्ष्म अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्तक संखेयगुण, उनसे सूक्ष्म पर्याप्त विशेषाधिक हैं। बादर जीव निरूपण 218. बायरस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहन्नणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। एवं बायरतसकाइयस्सवि / बायरपुढविकाइयस्स बावीसं वास सहस्साई, वायरमाउस्स सत्त वाससहस्सं, बायर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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