Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 112] [जीवाजीवाभिगमसूत्र चन्द्र के समान विलास वाली हैं, अर्धचन्द्र के समान भाल बाली हैं, वे शृगार की साक्षात् मूर्ति हैं और सुन्दर परिधान वाली हैं, वे सुन्दर यावत् दर्शनीय, प्रसन्नता पैदा करने वाली और सौन्दर्य की प्रतीक हैं। उनमें जो अविकुर्वित शरीर वाली हैं वे आभूषणों और वस्त्रों से रहित स्वाभाविक-सहज सौन्दर्य वाली हैं। सौधर्म-ईशान को छोड़कर शेष कल्पों में देव ही हैं, वहां देवियां नहीं हैं। अतः अच्युतकल्प पर्यन्त देवों की विभूषा का वर्णन उक्त रीति के अनुसार ही करना चाहिए। प्रैवेयकदेवों की विभूषा कैसी है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि गौतम ! वे देव आभरण और वस्त्रों की विभूषा से रहित हैं, स्वाभाविक विभूषा से सम्पन्न हैं। वहां देवियां नहीं हैं। इसी प्रकार अनुत्तरविमान के देवों की विभूषा का कथन भी कर लेना चाहिए। भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प में देव कैसे कामभोगों का अनुभव करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! इष्ट शब्द, इष्ट रूप यावत इष्ट स्पर्श जन्य सुखों का अनुभव करते हैं / ग्रेवेयकदेवों तक उक्त रीति से कहना चाहिए / अनुत्तरविमान के देव अनुत्तर शब्द यावत् अनुत्तर स्पर्श जन्य सुख का अनुभव करते हैं। सब वैमानिक देवों की स्थिति कहनी चाहिए तथा देवभव से च्यवकर कहां उत्पन्न होते हैंयह उद्वर्तनाद्वार कहना चाहिए। विवेचन--उक्त सूत्र में स्थिति और उद्वर्तना का निर्देशमात्र किया गया है / अतएव संक्षेप में उसकी स्पष्टता करना यहां आवश्यक है / स्थिति इस प्रकार है कल्पादि के नाम जघन्यस्थिति उत्कृष्टस्थिति | सौधर्मकल्प ईशानकल्प M सनत्कुमारकल्प माहेन्द्रकल्प ory ब्रह्मलोककल्प लान्तककल्प महाशुक्रकल्प सहस्रारकल्प प्रानतकल्प प्राणतकल्प प्रारणकल्प अच्युनकल्प 1 पल्योपम १पल्यो.से कुछ अधिक 2 सागरोपम 2 सागरोपम से अधिक 7 सागरोपम 10 सागरोपम 14 सागरोपम 17 सागरोपम 18 सागरोपम 19 सागरोपम 20 सागरोपम 21 सागरोपम 2 सागरोपम 2 सागरोपम से कुछ अधिक 7 सागरोपम 7 सागरोपम से अधिक 10 सागरोपम 14 सागरोपम 17 सागरोपम 18 सागरोपम 19 सागरोपम 20 सागरोपम 21 सागरोपम 22 सागरोपम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org