Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सामान्यतया भवस्थिति आदि का वर्णन] [ 117 है, जो वनस्पतिकाय में अनन्तकाल तक जन्म-मरण करते रहने के बाद देव बनने पर घटित होता है। अल्पबहुत्वद्वार अल्पबहुत्व विवक्षा में सबसे थोड़े मनुष्य हैं। क्योंकि वे श्रेणी के असंख्येयभागवर्ती आकाशप्रदेशों की राशिप्रमाण हैं। उनसे नैरयिक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेश राशि के प्रथम वर्गमूल को द्वितीय वर्गमूल से गुणित करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है उतने प्रमाण वाली श्रेणिबों में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उतने प्रमाण में नैरयिक हैं / नैरयिकों से देव असंख्येयगुण हैं, क्योंकि महादण्डक में व्यन्तर और ज्योतिष्क देव नारकियों से असंख्यात गुण कहे गये हैं। देवों से तिर्यच अनन्तगुण हैं, क्योंकि वनस्पति के जीव अनन्तानन्त कहे गये हैं। इस प्रकार चार प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों की प्रतिपत्ति का कथन सम्पूर्ण हुमा / // तृतीय प्रतिपत्ति समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org