Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 630
________________ पञ्चविधाख्या चतुर्य प्रतिपत्ति] [119 208. एगिदिए गं भंते ! एगिदिएत्ति कालओ केवच्चिर होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। बेइंदिए गं भंते ! बेइंदिएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं संखेनं कालं जाव चरिदिए संखेज्जं कालं। पंचिदिए णं भंते ! पंचिंविएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगे। एगिदिए णं अपज्जत्तए णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं जाव पंचिदियअपज्जत्तए / पज्जत्तगएगिदिए णं भंते ! कालमो केवच्चिर होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतीमुहत्तं उक्कोसेणं संखिज्जाइं वाससहस्साई। एवं बेइंदिएवि, णरि संखेज्जाई वासाइं। तेइंदिए णं भंते० संखेज्जा राइंदिया। चउरिदिए णं० संखेज्जा मासा / पज्जत्तपंचिदिए सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेगं / एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होई ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमभहियाई। बेइंदियस्स गं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं तेइंदियस्स चउरिदियस्स पंचेंदियस्स / अपज्जत्तगाणं एवं चेव / पज्जत्तगाण वि एवं चेव। 208. भगवन् ! एकेन्द्रिय, एकेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल पर्यन्त रहता है / भगवन् ! द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है / यावत् चतुरिन्द्रिय भी संख्यात काल तक रहता है / __ भगवन् ! पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार सागरोपम तक रहता है / भगवन् ! अपर्याप्त एकेन्द्रिय उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमहर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तमहर्त तक रहता है। इसी प्रकार अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए। भगवन् ! पर्याप्त एकेन्द्रिय उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष तक रहता है। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय का कथन करना चाहिए, विशेषता यह है कि यहां संख्यात वर्ष कहना चाहिए। भगवन् ! श्रीन्द्रिय की पृच्छा ? संख्यात रात-दिन तक रहता है। चतुरिन्द्रय संख्यात मास तक रहता है / पर्याप्त पंचेन्द्रिय साधिकसागरोपमशतपृथक्त्व तक रहता है / ___ भगवन् ! एकेन्द्रिय का अन्तर कितना कहा गया है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट दो हजार सागरोपम और संख्यात वर्ष अधिक का अन्तर है। द्वीन्द्रिय का अन्तर कितना है ? sain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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