________________ 16] [ जीवाजीवाभिगमसूत्र गौतमद्वीप का वर्णन 161. कहिणं भंते ! सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णाम दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं बारसजोयणसहस्साइं ओगाहिता एत्थ गं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णामं दीवे पण्णत्ते, बारस जोयणसहस्साई प्रायामविक्खंभेणं सत्ततीसं जोयणसहस्साई नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं जंबूदोवंतेणं अद्धकोणणउए जोयणाई चत्तालीसं पंचणउट्टभागे जोयणस्स असिए जलंताओ, लवणसमुईतेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ। से णं एगाए य पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सध्वनो समंता तहेव वण्णओ दोण्ह वि। गोयमदीवस्स णं अंतो जाव बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते / से जहाणामए आलिंगयुक्खरेइ वा जाव प्रासयंति / तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे एत्थ णं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स एगे महं अइक्कीलावासे णामे भोमेज्जविहारे पण्णत्ते बाढि जोयणाई अद्धजोयणं य उड्ड उच्चत्तेणं, एकत्तीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं अणेगखंभसयसन्निविट्ठे भवणवण्णओ भाणियन्यो। अइक्कोलावासस्स णं भोमेज्जविहारस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णते जाव मणीणं फासो / तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ एगा मणिपेढिया पण्णत्ता। साणं मणिपेढिया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा / तोसे णं मणिपेढियाए उरि एत्थ णं देवसयणिज्जे पण्णत्ते, वण्णओ। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-गोयमदीवे गोयमदीवे ? तत्थ-तत्थ तहि-तहिं बहूई उप्पलाई जाव गोयमप्पभाई से एएणठेणं गोयमा ! जाव णिच्चे। कहि णं भंते ! सुठ्ठियस्स लवणाहिवइस्त सुठियाणामं रायहाणी पण्णता? गोयमा ! गोयमदोवस्स पच्चत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे जाव अण्णम्मि लवणसमुद्दे, बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एवं तहेव सन्वं णेयव्वं जाव सुट्ठिए देवे / 161. हे भगवन् ! लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतमद्वीप कहां है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतमद्वीप नाम का द्वीप है / वह गौतमद्वीप बारह हजार योजन लम्बाचौड़ा और सैंतीस हजार नौ सौ अड़तालीस (37948) योजन से कुछ कम परिधि वाला है। यह जम्बूद्वीपान्त की दिशा में साढ़े अठ्यासी (883) योजन और योजन जलान्त से ऊ तथा लवणसमूद्र की ओर जलान्त से दो कोस ऊपर उठा हुया है। यह गौतमद्वीप एक पावरवेदिका और एक वनखण्ड से सब ओर से घिरा हुआ है / यहां दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। गौतमद्वीप के अन्दर यावत् बहुसमरमणीय भूमिभाग है। उसका भूमिभाग मुरज के मढ़े हुए चमड़े की तरह समतल है, आदि सब वर्णन कहना चाहिए यावत् वहां बहत से वाणव्यन्तर देव-देवियां उठती-बैठती हैं, प्रादि उस बहसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्यभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org