________________ 30] [जीबाजीवाभिगमसूत्र हे भगवन् ! लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कंभ कितना है, उसकी परिधि कितनी है ? उसकी गहराई कितनी है, उसको ऊँचाई कितनी है ? उसका समग्र प्रमाण कितना है ? ___ गौतम ! लवणसमुद्र चक्रवाल-विष्कंभ से दो लाख योजन का है, उसकी परिधि पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनचालीस (1581139) योजन से कुछ कम है, उसकी गहराई एक हजार योजन है, उसका उत्सेध (ऊँचाई) सोलह हजार योजन का है / उद्वेध और उत्सेध दोनों मिलाकर समग्र रूप से उसका प्रमाण सत्तरह हजार योजन है। विवेचन---लवणसमुद्र का प्राकार विविध अपेक्षामों को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार का बताया गया है / क्रमशः निम्न, निम्नतर गहराई बढ़ने के कारण गोतीर्थ के आकार का कहा गया है। दोनों तरफ समतल भूभाग की अपेक्षा क्रम से जलवृद्धि होने के कारण नाव के आकार का कहा है। उद्वेध का जल और जलवृद्धि का जल एकत्र मिलने की अपेक्षा से सोप के पुट के आकार का कहा है। दोनों तरफ 95 हजार योजन पर्यन्त उन्नत होने से सोलह हजार योजन प्रमाण ऊँची शिखा होने से अश्वस्कन्ध की आकृति वाला कहा गया है। दश हजार योजन प्रमाण विस्तार वाली शिखा वलभीगहाकार प्रतीत होने से वलभी (भवन की अदालिका-चांदनी) के आकार का कहा गया है। लवणसमुद्र गोल है तथा चूड़ी के आकार का है। लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कंभ, परिधि, उद्वेध, उत्सेध और समग्र प्रमाण मूलार्थ से ही स्पष्ट है।' 1. यहां पूर्वाचार्यों ने लवणसमुद्र के घन और प्रतर का गणित भी निकाला है जो जिज्ञासुत्रों के लिए यहां दिया जा रहा है। प्रतरभावना इस प्रकार है- लवणसमुद्र के दो लाख योजन विस्तार में से दस हजार योजन निकाल कर शेष राशि का आधा किया जाता है—ऐसा करने से 95000 की राशि होती है। इस राशि में पहले के निकाले हुए दस हजार की राशि मिला दी जाती है तो 105000 होते हैं। इस राशि को कोटी कहा जाता है। इस कोटी से लवणसमुद्र का मध्यभागवर्ती परिरय (परिधि) 948683 का गुणा किया जाता है तो प्रतर का परिमाण निकल पाता है। वह परिमाण है---९९६११७१५००० / कहा है वित्थारामो सोहिय दस सहस्साई सेस अद्धम्मि / तं चेव पक्खिवित्ता लवणसमूहस्स सा कोडी॥१॥ लक्खं पंचसहस्सा कोडीए तीए संगुणेऊणं / लवणस्स मज्झपरिहि ताहे पयर इमं होइ // 2 // नवनउई कोडिसया एगट्ठी कोडिलक्खसत्तरसा / पन्नरस सहस्साणि य पयरं लवणस्स णिद्दिट्ठ॥३॥ घनगणित इस प्रकार है-लवणसमुद्र की 16000 योजन की शिखा और एक हजार योजन उदवेध कुल सत्तरह हजार योजन की संख्या से प्राक्तन प्रतर के परिमाण को गुणित करने से लवणसमुद्र का घन निकल आता है / वह है-१६९३३९९१५५०००००० योजन / कहा है-- जोयणसहस्स सोलह लवणसिहा अहोगया सहस्सेमं / पथरं सत्तरसहस्सगुणं लवणघणगणियं // 1 // सोलस कोडाकोडी ते णउइ कोडिसयसहस्सायो। उणयालीसहस्सा नवकोडिसया य पन्नरसा // 2 // - (मागे के पृष्ठ में) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org