________________ नंदीश्वरद्वीप को वक्तव्यता] [65 तं जहा-देवे, असुरे, णागे, सुवणे / ते ण दारा सोलसजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकगण० वण्णो जाव वणमाला। तेसि णं वाराणं चउदिसि चत्तारि मुहमंउवा पण्णता / तेणं मुहमंडवा जोयणसयं आयामेणं पण्णासं जोयणावं विक्खंभेणं साइरेगाई सोलसजोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं वण्णश्रो। तेसि गं मुहमंडवाणं चउहिसि (तिदिसि) चत्तारि (तिण्णि) दारा पग्णता। ते णं दारा सोलसजोयणाई उड्ढं उच्चत्तणं, अजोयणाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेसं तं चेव जाव वणमालाओ। एवं पेच्छाघरमंडवा वि, तं चेव पमाणं जं मुहमंडवाणं वारा वि तहेव, गरि बहुमज्मदेसे पेच्छाघरमंडवाणं अक्खाडगा मणिपेढियाओ अट्ठजोयणपमाणाओ सीहासणा अपरिवारा जाव दामा थूभाई चउद्दिसि तहेव गवरि सोलसजोयणप्पमाणा साइरेगाइं सोलसजोयणाई उच्चा सेसं तहेव जाव जिणपडिमा। चेइयरुक्खा तहेव चउद्दिसि तं चेव पमाणं जहा विजयाए रायहाणीए णवरि मणिपेढियाओ सोलसजोयणप्पमाणाओ। तेसि णं चेइयरुक्खाणं चउद्दिसि चत्तारि मणिपेढियाओ अट्ठजोयणविक्खंभाओ चउजोयणबाहल्लाओ महिंदज्झया चउसद्विजोयणुच्चा जोयणोव्वेधा जोयणविक्खंभा सेसं तं चेव। ___ एवं चउद्दिसि चत्तारि गंदापुक्खरणीओ, णवरि खोयस्स पडिपुण्णाओ जोयणसयं आयामेणं पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं पण्णासं जोयणाइं उन्हेणं सेसं तं चेव / मणोगुलियाणं गोमाणसीण य अडयालीसं अडयालीसं सहस्साई पुरच्छिमेणवि सोलस पच्चत्थिमेणवि सोलस दाहिणेणवि अट्ठ उत्तरेणवि अट्ठ साहस्सीओ तहेव सेसं उल्लोया भूमिभागा जाव बहुमज्झदेसभाए मणिपेढिया सोलसजोयणा आयामविक्खंभेणं अट्ठजोयणाई बाहल्लेणं तारिसं मणिपेढियाणं उपि देवच्छंदगा सोलसजोयणाई प्रायामविक्खंभेणं साइरेगाई सोलसजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं सव्वरयणामया० अट्ठसयं जिणपडिमाणं सो चेव गमो जहेव वेमाणियसिद्धाययणस्स / 183. (ख) उन प्रत्येक सिद्धायतनों की चारों दिशाओं में चार द्वार कहे गये हैं; उनके नाम हैं-देवद्वार, असुरद्वार, नागद्वार और सुपर्णद्वार / उनमें महद्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले चार देव रहते हैं; उनके नाम हैं---देव, असुर, नाग और सुपर्ण / वे द्वार सोलह योजन ऊँचे, आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रमाण के प्रवेश वाले हैं / ये सब द्वार सफेद हैं, कनकमय इनके शिखर हैं अादि वनमाला पर्यन्त सब वर्णन विजयद्वार के समान जानना चाहिए। उन द्वारों की चारों दिशाओं में चार मुखमंडप हैं / वे मुखमंडप एक सौ योजन विस्तार वाले, पचास योजन चौड़े और सोलह योजन से कुछ अधिक ऊँचे हैं / विजयद्वार के समान वर्णन कहना चाहिए। उन मुखमंडप की चारों (तीनों) दिशाओं में चार (तीन) द्वार कहे गये हैं। वे द्वार सोलह योजन ऊँचे, पाठ योजन चौड़े और पाठ योजन प्रवेश वाले हैं आदि वर्णन बनमाला पर्यन्त विजयद्वार तुल्य ही है। __इसी तरह प्रेक्षागृहमंडपों के विषय में भी जानना चाहिए / मुखमंडपों के समान ही उनका प्रमाण है। द्वार भी उसी तरह के हैं। विशेषता यह है कि बहुमध्यभाग में प्रेक्षागृहमंडपों के अखाड़े, (चौक) मणिपीठिका पाठ योजन प्रमाण, परिवार रहित सिंहासन यावत् मालाएं, स्तूप आदि चारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org