Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 581
________________ 70 [जीवाजीवाभिगमसूत्र इसी तरह अरुणवरावभाससमुद्र में अरुणवरावभासवर एवं अरुणवरावभासमहावर नाम के दो महद्धिक देव वहां रहते हैं। शेष पूर्ववत् / कुण्डलद्वीप में कुण्डलभद्र एवं कुण्डलमहाभद्र नाम के दो देव रहते हैं और कुण्डलोदसमुद्र में चक्षुशुभ और चक्षुकांत नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं / शेष वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। कुण्डलवरद्वीप में कुण्डलवरभद्र और कुण्डलवरमहाभद्र नामक दो महद्धिक देव रहते हैं / कुण्डलवरोदसमुद्र में कुण्डलवर और कुण्डलवरमहावर नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं। कुण्डलवरावभासद्वीप में कुण्डलवरावभासभद्र और कुण्डलवरावभासमहाभद्र नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं / कुण्डलवरावभासोदकसमुद्र में कुण्डलवरोभासवर एवं कुण्डलवरोभासमहावर नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं। ये देव पल्योपम की स्थिति वाले हैं प्रादि वर्णन जानना चाहिए। 185. (इ) कुण्डलवरोभासं णं समुदं रुचगे णाम दीवे वलयागार० जाव चिट्ठइ / कि समचक्कवाल० विसमचक्कवाल? गोयमा ! समचक्कवाल० नो विसमचक्कवालसंठिए / केवइयं चक्कवाल० पण्णत्ते ? सव्वट्ठमणोरमा एत्थ दो देवा, सेसं तहेब / रुयगोदे णामं समुद्दे जहा खोदोदे समुद्दे संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविवखंभेणं, संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं / दारा, वारंतरं वि संखेज्जाइं, जोइस पि सव्वं सज्ज भाणियन्वं / अट्ठो वि जहेव खोदोदस्स णरि सुमण-सोमणसा एस्थ दो देवा महिड्डिया तहेव / रुयगाओ आढत्तं असंखेज्जं विक्खंभ परिक्खेवो दारा दारंतरं जोइसं च सव्वं असंखेज्जंभागियध्वं / __रुयदोगं गं समुदं स्यगवरे गं दीवे वट्टे रुयगवरभद्द-रुयगवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा / रुयगवरोदे रुयगवर-रुयगवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया। रुयगवराभासे दीवे रुयगवरावभासभद्द-रुयगवरावभासमहाभद्दा एथ दो देवा महिड्डिया / रुयगवरावभासे समुद्दे रुयगवरावभावसर-रुयगवरावभासमहावरा एस्थ दो देवा० / हारद्दीवे / हारभद्द-हारमहाभद्दा दो देवा / हारसमुद्दे हारवर-हारवरमहावरा एत्थ बो देवा महिड्डिया / हारवरदीवे हारवरभद्द-हारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया। हारवरोए समुद्दे हारवर-हारवरमहावरा एत्थ दो देवा० / हारवरावभासे दीवे हारवरावभासभद्द-हारवरावभासमहाभद्दा एत्थ दो देवा० / हारवरावभासोए समुद्दे हारवरावभावर-हारवरावभासमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया। एवं सम्वेवि तिपडोयारा यग्वा जाव सूरवरावभोसोदे समुद्दे। दोवेसु भहनामा वरनामा होति उदहीसु। जाव पच्छिमभावं च खोयवरादीसु सयंभूरमणपज्जन्तेसु // वावीमो खोदोदग पडिहत्थाओ पन्वया य सव्ववइरामया // 185. (इ) कुण्डलवराभाससमुद्र को चारों ओर से घेरकर रुचक नामक द्वीप अवस्थित है, जो गोल और वलयाकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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