________________ 98] [जीवाजीवाभिगमसूत्र 4-4 दि सागरोपम और छह पल्योपम की, बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और पांच पल्योपम की है। __ महाशुक्र इन्द्र की भी तीन परिषद् हैं। प्राभ्यन्तर परिषद् में एक हजार देव, मध्यम परिषद् में दो हजार देव और बाह्य परिषद् में चार हजार देव हैं। आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े पन्द्रह सागरोपम और पांच पल्योपम की है। मध्यम परिषद के देवों की स्थिति साढे पन्द्रह सागरोपम और चार पल्योपम की और बाह के देवों की स्थिति साढ़े पन्द्रह सागरोपम और तीन पल्योपम की है। परिषदों का अर्थ पूर्ववत् कहना चाहिए। ___ सहस्रार इन्द्र की प्राभ्यन्तर पर्षद में पांच सौ देव, मध्यम पर्षद में एक हजार देव और बाह्य पर्षद में दो हजार देव हैं। प्राभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्यम पर्षद के देवों को स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और छह पल्योपम की है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और पांच पल्योपम की है। 199. (उ) आणयपाणयस्सवि पुच्छा जाव तनो परिसाओ नवरं अभितरियाए अड्डाइज्जा देवसया, मज्झिमियाए पंच देवसया, बाहिरियाए एगा देवसाहस्सी। ठिई -अभितरियाए एगूणवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाई, एवं मज्झिमियाए एगूणवीसं सागरोवमाइं चत्तारि य पलिप्रोवमाई, बाहिरियाए परिसाए एगूणवीसं सागरोवमाइं तिण्णि य पलिओवमाई ठिई / अट्ठो सो चेव / कहि णं भंते ! आरण-अच्चुयाणं देवाणं तहेव अच्चुए सपरिवारे जाव विहरई / अच्चुयस्स णं देविदस्स तयो परिसाओ पण्णत्ताओ / अभितरियाए देवाणं पणवीस सयं, मज्झिमपरिसाए अड्डाइज्जासया, बाहिरियपरिसाए पंचसया। अभितरियाए एकवीसं सागरोवमाइं सत्त य पलिओवमाइं, मज्झिमाए एक्कवीसं सागरोवमाइं छप्पलिओवमाई, बाहिरियाए एक्कवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। कहि णं भंते ! हेट्ठिम गेवेज्जगागं देवाणं विमाणा पण्णता ? कहि णं भंते ! हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति ? जहेव ठाणपदे तहेव; एवं मज्झिमगेवज्जगा उवरिमगेवेज्जगा अणुत्तरा य जाव अहमिदा नाम ते देवा पण्णत्ता समणाउसो! 199 (उप्रानत-प्राणत देवलोक विषयक प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि प्राणत देव की तीन पर्षदाएं हैं / प्राभ्यन्तर पर्षद में अढाई सौ देव हैं, मध्यम पर्षद में पांच सौ देव और बाह्य पर्षद में एक हजार देव हैं, आभ्यन्तर पर्षद के देवों को स्थिति उन्नीस सागरोपम और पांच पल्योपम है, मध्यम पर्षद के देवों स्थिति उन्नीस सागरोपम और चार पल्योपम की है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति उन्नीस सागरोपम और तीन पल्योपम की है। पर्षदा का अर्थ पहले की तरह करना चाहिए / भगवन् ! पारण-अच्युत देवों के विमान कहां कहे गये हैं. इत्यादि कथन करना चाहिए यावत् वहां अच्युत नाम का देवेन्द्र देवराज सपरिवार विचरण करता है। देवेन्द्र देवराज अच्युत की तीन पर्षदाएं हैं / आभ्यन्तर पर्षद में एक सौ पच्चीस देव, मध्य पर्षद में दो सौ पचास देव और बाह्य पर्षद में पांच सौ देव हैं / प्राभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और सात पल्योपम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org