________________ परिषदों और स्थिति आदि का वर्णन ] 1101 विमानावासों की संग्रह-गाथाओं का अर्थ--' 1. सौधर्म देवलोक में 32 लाख विमानावास हैं 2. ईशान देवलोक में 28 लाख विमानावास हैं 3. सनत्कुमार में 12 लाख विमानावास हैं 4. माहेन्द्र में 8 लाख विमानावास हैं 5. ब्रह्मलोक में 4 लाख विमानावास हैं 6. लान्तक में 50 हजार विमानावास हैं 7. महाशुक्र में 40 हजार विमानावास हैं 8. सहस्रार में 6 हजार विमानावास हैं 9-10. आनत-प्राणत 400 विमानावास हैं 11-12. प्रारण-अच्युत 300 विमानावास हैं नवग्रंवेयक 318 विमानावास हैं (प्रथमत्रिक में 111) (द्वितीयत्रिक में 107) (तृतीय त्रिक में 100) अनुत्तरविमान 5 विमानावास हैं चौरासी लाख सत्तानवै हजार तेईस 84,97,023 (कुल) विमानावास हैं / प्रथम कल्प में 84 हजार सामानिक देव हैं / दूसरे में 80,000, तीसरे में 72,000, चौथे में 70 हजार, पांचवें में 60,000, छठे में 50,000, सातवें में 40,000, आठवें में 30,000, नौवेंदसवें में 20,000, ग्यारहवें-बारहवें कल्प में 10,000 सामानिक देव हैं। // प्रथम वैमानिक उद्देशक पूर्ण / 1. बत्तीस अट्ठावीसा बारस अट्र चउरो सयसहस्सा / पन्ना चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे // 1 // प्राणय-पाणय कप्पे चत्तारि सया प्रारण-अच्चए तिष्णि / सत्त विमाणसयाइं चउसुबि एसु कप्पेसु / / 2 / / सामानिक संग्रह गाथा चउरासीइ असीइ बावत्तरी सत्तरिय सट्ठी य / पण्णा चत्तालीसा तीसा बीसा दस सहस्सा // 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org