________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र प्रावलिका-प्रविष्ट (पंक्तिबद्ध) विमान हैं, वे तीन प्रकार के हैं-१. गोल, 2. त्रिकोण और 3. चतुष्कोण / जो आवलिका-बाह्य हैं वे नाना प्रकार के हैं। इसी तरह का कथन वेयकविमानों पर्यन्त कहना चाहिए / अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं—गोल और त्रिकोण / भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई-चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम ! वे विमान दो तरह के हैं-संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले / जैसे नरकों का कथन किया गया है वैसा ही कथन यहां करना चाहिए; यावत् अनुत्तरोपपातिकविमान दो प्रकार के हैं-संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले / जो संख्यात योजन विस्तार वाले हैं वे जम्बूद्वीप प्रमाण हैं और जो असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं वे असंख्यात हजार योजन विस्तार और परिधि वाले कहे गये हैं / भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमान कितने रंग के हैं ? गौतम पांचों वर्ण के विमान हैं, यथा कृष्ण, नील, लाल, पीले और सफेद / सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में विमान चार वर्ण के हैंनील यावत् शुक्ल / ब्रह्मलोक एवं लान्तक कल्पों में विमान तीन वर्ण के हैं लाल यावत् शुक्ल / महाशक एवं सहस्रार कल्प में विमान दो रंग के हैं--पीले और सफेद / पानत प्राणत पारण और अच्युत कल्पों में विमान सफेद वर्ण के हैं / वेयकविमान भी सफेद हैं। अनुत्तरोपपातिकविमान परम-शुक्ल वर्ण के हैं। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की प्रभा कैसी है ? गौतम ! वे विमान नित्य स्वयं की प्रभा से प्रकाशमान और नित्य उद्योत वाले हैं यावत् अनुत्तरोपपातिकविमान भी स्वयं की प्रभा से नित्यालोक और नित्योद्योत वाले कहे गये हैं। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की गंध कैसी कही गई हैं ? गौतम ! जैसे कोष्ठपुढादि सुगंधित पदार्थों की गंध होती है उससे भी इष्टतर उनकी गंध है, अनुत्तरविमान पर्यन्त ऐसा ही कथन करना चाहिए। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों का स्पर्श कैसा कहा गया है ? गौतम ! जैसे अजिन चर्म, रूई आदि का मृदुल स्पर्श होता है, वैसा स्पर्श करना चाहिए, अनुत्तरोपपातिकविमान पर्यन्त ऐसा ही कहना चाहिए। 201 (इ) सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु बिमाणा केमहालया पण्णत्ता? गोयमा! अयण्णं जंबुद्दीवे दोवे सव्वदोवे-समुद्दाणं सो चेव गमो जाव छम्मासे वीइवएज्जा जाव अत्थेगइया विमाणावासा नो वीइवएज्जा जाव अणुत्तरोक्वाइयविमाणा, अत्थेगइयं विमाणं वोइवएज्जा, अत्थेगइए णो वीइवएज्जा। सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा किमया पण्णत्ता ? गोयमा ! सव्वरयणामया पण्णत्ता / तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमति चयंति उवचयंति / सासया णं ते विमाणा दन्वट्ठयाए जाव फासपज्जवेहि असासया जाव अणुत्तरोववाइयाविमाणा। सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा कओहितो उवधज्जति ? उववाओ णेयध्वो जहा वक्तीए तिरियमणुएसु पंचिदिएसु सम्मुच्छिमवज्जिएसु, उववाओ वक्कतिगमेणं जाव अणुत्तरोववाइया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org