________________ बाहल्य आदि प्रतिपादन] [107 सोहम्मीसाणादेवा कि णाणी अण्णाणी ? गोयमा ! दोवि तिणि जाणा, तिणि अण्णाणा णियमा जाव गेवेज्जा। अणुत्तरोबवाइया नाणी, गो अण्णाणी। तिणि णाणा तिण्णि अण्णाणा णियमा जाव गेवेज्जा / अणुत्तरोवधाइया गाणी, नो अण्णाणी, तिण्णि णाणा णियमा।तिविहे जोगे, दुविहे उवओगे, सब्वेसि जाव अणुत्तरा / 201. (ई) भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में देवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! उनके दो प्रकार के शरीर होते हैं -भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय, उनमें भवधारणीय शरीर को अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से सात हाथ है। उत्तरवैक्रिय शरीर की अपेक्षा से जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन है। इस प्रकार आगे-आगे के कल्पों में एक-एक हाथ कम करते जाना चाहिए, यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों की एक हाथ की अवगाहना रह जाती है / (जैसे सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प में उत्कृष्ट भवधारणीय शरीर की अवगाहना छह हाथ प्रमाण, ब्रह्मलोक-लान्तक में पांच हाथ, महाशुक्र-सहस्रार में चार हाथ, प्रानत-प्राणत-पारण-अच्यूत में तीन हाथ, नवग्रैवेयक में दो हाथ और अनत्तर विमानों में एक हाथ प्रमाण अवगाहना है।) ग्रैवेयकों और अनुत्तर विमानों में केवल भवधारणीय शरीर होता है / वे देव उत्तरविक्रिया नहीं करते / भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संहनन कौनसा है ? गौतम ! छह संहननों में से एक भी संहनन उनमें नहीं होता; क्योंकि उनके शरीर में न हड्डी होती है, न शिराएं होती हैं और न नसें ही होती हैं। अतः वे असंहननी हैं। जो पुद्गल इष्ट, कान्त यावत् मनोज्ञ-मनाम होते हैं, वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप में परिणत होते हैं / यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना चाहिए। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संस्थान कैसा है ? गौतम ! उनके शरीर दो प्रकार के हैं- भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय / जो भवधारणीय शरीर है, उसका समचतुरस्रसंस्थान है और जो उत्तरवक्रिय शरीर है, उनका संस्थान (आकार) नाना प्रकार का होता है। यह कथन अच्युत देवलोक तक कहना चाहिए। प्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के देव उत्तर-विकुर्वणा नहीं करते / उनका भवधारणीय शरीर समचतुरस्रसंस्थान वाला है। उत्तरविक्रिया वहां नहीं है। भगवन् ! सौधर्म-ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभायुक्त उनका वर्ण है। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग (केशर) के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं / इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना चाहिए / अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परमशुक्ल है।। भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों के शरीर की गंध कैसी है ? गौतम ! जैसे कोष्ठपुट आदि सुगंधित द्रव्यों की सुगंध होती है, उससे भी अधिक इष्ट, कान्त यावत् मनाम उनके शरीर की गंध होती है। अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त ऐसा ही कथन करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org