________________ परिषदों और स्थिति आदि का वर्णन] की है, मध्य पर्षद के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और छह पल्योपम की है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति इक्कीस सागरोपम और पांच पल्योपम की है। भगवन् ! अधस्तन-प्रेवेयक देवों के विमान कहां कहे गये हैं ? भगवन् ! अधस्तन-बेयक देव कहाँ रहते हैं ? जैसा स्थानपद में कहा है वैसा ही कथन यहां करना चाहिए / इसी तरह मध्यमग्रेवेयक, उपरितन-प्रैवेयक और अनुत्तर विमान के देवों का कथन करना चाहिए / यावत् हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब अहमिन्द्र हैं- वहां कोई छोटे-बड़े का भेद नहीं है। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में वर्णित विषय को निम्न कोष्टक से समझने में सुविधा रहेगी-- कल्पों के नाम स्थिति देवों की संख्या देवी संख्या देव देवी 1. सौधर्म आभ्यन्तर पर्षद मध्यम पर्षद बाह्य पर्षद 12,000 14,000 16,000 700 600 5 पल्यो . 4 पल्यो . 3 पल्यो . 2. ईशान आभ्यन्तर पर्षद 10,000 7 पल्यो . ५प. से कुछ अधिक 4 प. 800 मध्यम पर्षद बाह्य पर्षद 12,000 14,000 6 पल्यो . 5 पल्यो . 39. 3. सनत्कुमार प्राभ्यन्तर पर्षद मध्यम पर्षद बाह्य पर्षद 8,000 10,000 12,000 देवियां नहीं देवियां नहीं देवियां नहीं साढ़े चार सागरो. 5 प. साढ़े चार सा. 4 प. साढ़े चार सा. 3 प. 4. माहेन्द्र प्राभ्य. पर्षद मध्यम पर्षद बाह्य पर्षद 8,000 10,000 देवियां नहीं देवियां नहीं देवियां नहीं साढ़े चार सा. 7 प. साढ़े चार सा. 6 प. साढ़े चार सा. 55. 4,000 आभ्य. पर्षद मध्यम पर्षद बाह्य पर्षद 6,000 देवियां नहीं देवियां नहीं देवियां नहीं साढ़ेआठ सा. 5 प. नहीं है साढ़ेसाठ सा.४ प. नहीं साढ़ेआठ सा. 3 प. नहीं है sho no to 8,000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org