Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ परिषदों और स्थिति आदि का वर्णन] [97 इसी प्रकार माहेन्द्र देवलोक के विमानों और माहेन्द्र देवराज देवेन्द्र का कथन करना चाहिए। वैसी ही तीन पर्षदा कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि ग्राभ्यन्तर पर्षद में छह हजार, मध्य पर्षद में प्राट हजार और बाह्य पर्षद में दस हजार देव हैं। प्राभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और सात पल्योपम की है। मध्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और छह पल्योपम की है और बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और पांच पल्योपम की है। इसी प्रकार स्थानपद के अनुसार पहले सब इन्द्रों के विमानों का कथन करने के पश्चात् प्रत्येक की पर्षदात्रों का कथन करना चाहिए। 199 (ई) बंभस्सवि तो परिसाम्रो पण्णत्तानो / अभितरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, मज्झिमियाए छ देवसाहस्सोओ, बाहिरियाए अट्ठ देवसाहस्सीओ। देवाणं ठिई-अभितरियाए परिसाए अद्धणवमाइं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाइं, मज्झिमियाए परिसाए अद्धनवमाई सागरोवमाई चत्तारि पलिओवमाई, बाहिरियाए परिसाए अद्धनवमाई सागरोवमाई तिग्णि य पलिओवमाई / अट्ठो सो चेव / लंतगस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अभितरियाए परिसाए दो देवसाहस्सोमो, मज्झिमियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, बाहिरियाए छ देवसाहस्सीमो पण्णत्तानो / ठिई भाणियव्वा / अभितरियाए परिसाए बारस सागरोवमाई सत्तपलिओवमाइं ठिई पण्णता, मज्झिमियाए परिसाए बारस सागरोवमाई छच्चपलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए बारस सागरोवमाइं पंच पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। महासुक्कस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अभितरियाए एगं देवसहस्सं, मज्झिमियाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्तामो, बाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ पण्णत्तायो / अभितरियाए परिसाए अद्धसोलस सागरोवमाइं पंच य पलिमोबमाई, मज्झिमियाए अद्धसोलस सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाई, बाहिरियाए प्रद्धसोलस सागरोवमाइं तिणि पलिओवमाइं पण्णत्ता / अट्ठो सो चेव / सहस्सारे पुच्छा जाव अभितरियाए परिसाए पंच देवसया, मज्झिमिया परिसाए एगा देवसाहस्सो, बाहिरियाए परिसाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्तायो। ठिई-अभितरियाए परिसाए अट्ठारस सागरोबमाई सत्त पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, एवं मज्झिमिझाए अट्ठारस सागरोवमाई छ पलियोवमाई, बाहिरियाए अद्धट्ठारस सागरोवमाई पंच पलिपोयमाई / अट्ठो सो चेव / 199. (ई) ब्रह्म इन्द्र की भी तीन पर्षदाएं हैं / आभ्यन्तर परिषद् में चार हजार देव, मध्यम परिषद् में छह हजार देव और बाह्य परिषद् में आठ हजार देव हैं। प्राभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े आठ सागरोपम और पांच पल्योपम है / मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े आठ सागरोपम और चार पल्योपम की है / बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े आठ सागरोपम और तीन पल्योपम की है। परिषदों का अर्थ पूर्वोक्त ही है। लन्तक इन्द्र की भी तीन परिषद् हैं यावत् प्राभ्यन्तर परिषद् में दो हजार देव, मध्यम परिषद् में चार हजार देव और बाह्य परिषद् में छह हजार देव हैं / प्राभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति बारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org