Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ परिषदों और स्थिति आदि का वर्णन] [95 गोयमा! सक्कस्स देविदस्स देघरम्रो प्रभितरियाए परिसाए देवाणं पचंपलिप्रोवमाई ठिई पण्णत्ता, मज्झिमिया परिसाए चत्तारि पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता / देवीणं ठिइ अभितरियाए परिसाए देवीणं तिन्नि पलिओवमाई ठिई पण्णता, मज्झिमियाए दुन्नि पलिओवमाई ठिई पण्णता, बाहिरियाए परिसाए एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। अट्ठो सो चेव जहा भवणवासीणं / 199 (अ) भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी पर्षदाएं कही गई हैं ? गौतम ! तीन पर्षदाएं कही गई हैं-समिता, चण्डा और जाया। आभ्यंतर पर्षदा को समिता कहते हैं, मध्य पर्षदा को चण्डा और बाह्य पर्षदा को जाया कहते हैं। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यंतर परिषद् में कितने हजार देव हैं, मध्य परिषद् और बाह्य परिषद् में कितने -कितने हजार देव हैं ? __गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक की आभ्यन्तर परिषद् में बारह-हजार देव, मध्यम परिषद् में चौदह हजार देव और बाह्य परिषद् में सोलह हजार देव हैं / आभ्यन्तर परिषद् में सात सौ देवियां मध्य परिषद् में छह सौ और बाह्य परिषद् में पांच सौ देवियां हैं / भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की प्राभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति कितनी कही गई है ? इसी प्रकार मध्यम और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति कितनी कितनी है ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की प्राभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति पांच पत्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति चार पल्योपम की है और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की है। प्राभ्यन्तर परिषद की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम, मध्यम परिषद की देवियों की स्थिति दो पल्योपम और बाह्य परिषद की देवियों की स्थिति एक पल्योपम की है। सभिता, चण्डा और जाया परिषद् का अर्थ वही है जो भवनवासी देवों के चमरेन्द्र के प्रसंग में कहा गया है। 199 (प्रा) कहि णं भंते ! ईसाणकाणं देवाणं विमाणा पण्णता ? तहेव सव्वं जाव ईसाणे एत्थ देविदे देवराया जाव विहरइ / ईसाणस्स भंते ! देविंदस्स देवरन्नो कई परिसाओ पण्णत्ताओ? ___ गोयमा ! तओ परिसासो पण्णताओ, तं जहा-समिया, चंडा, जाया। तहेव सव्वं, गवरं अभितरियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ पण्णताओ, मज्झिमियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीयो पण्णत्तानो, बाहिरियाए चउद्दस देवसाहस्सीओ / देवोणं पुच्छा ? अभितरियाए नव देवीसया पण्णत्ता, मज्झिमियाएपरिसाए अट्टदेवीसया पण्णत्ता, बाहिरियाएपरिसाए सत्त दीवसया पण्णत्ता। देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता ? अभितरियाए परिसाए देवाणं सत्त पलिनोवमाई ठिई पण्णता / मज्झिमियाए छ पलिओवमाई, बाहिरियाए परिसाए पंच पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। देवीणं पुच्छा ?अभितरियाए साइरेगाइं पंच पलिनोवमाई मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए तिण्णि पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता / अट्ठो तहेव भाणियव्यो। 199 (प्रा) भगवन् ! ईशानकल्प के देवों के विमान कहां से कहे गये हैं आदि सब कथन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org