________________ 94] [जीवाजीवाभिगमसूत्र कल्याणकारी श्रेष्ठमाला और अनुलेपन धारण किये हुए हैं। उनका शरीर देदीप्यमान होता है। वे लम्बी वनमाला धारण किये हुए होते हैं। दिव्य वर्ण से, दिव्य गंध से, दिव्य स्पर्श से, दिव्य संहनन और दिव्य संस्थान से, दिव्य ऋद्धि, दिव्य द्युति, दिव्य प्रभा, दिव्य छाया, दिव्य अचि, दिव्य तेज और दिव्य लेश्या से दसों दिशाओं को उद्योतित एवं प्रभासित करते हुए वे वहां अपने-अपने लाखों विमानावासों का, अपने-अपने हजारों सामानिक देवों का, अपने-अपने त्रायस्त्रिशक देवों का, अपनेअपने लोकपालों का, अपनी-अपनी सपरिवार अग्रमहिषियों का, अपनी-अपनी परिषदों का, अपनीअपनी सेनामों का, अपने-अपने सेनाधिपति देवों का, अपने-अपने हजारों प्रात्मरक्षक देवों का तथा बहत से वैमानिक देवों और देवियों का प्राधिपत्य परोवतित्व (अग्रेरसत्व). स्वामित्व. भर्त महत्तरकत्व, आज्ञैश्वर्यत्व तथा सेनापतित्व करते-कराते और पालते-पलाते हुए निरन्तर होने वाले महान् नाट्य, गीत तथा कुशलवादकों द्वारा बजाये जाते हुए वीणा, तल, ताल, त्रुटित, घनमृदंग प्रादि वाद्यों की समुत्पन्न ध्वनि के साथ दिव्य शब्दादि कामभोगों को भोगते हुए विचरण करते हैं / ___ जंबूद्वीप के सुमेरु पर्वत के दक्षिण के इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुसमरमणीय भूभाग से ऊपर ज्योतिषकों से अनेक कोटा-कोटी योजन ऊपर जाने पर सौधर्म नामक कल्प है। यह लम्बा, उत्तर-दक्षिण में विस्तीर्ण, अर्धचन्द्र के आकार में संस्थित अचिमाला और दीप्तियों की राशि के समान कांतिवाला, असंख्यात कोटा-कोटी योजन की लम्बाई-चौड़ाई और परिधि वाला तथा सर्वरत्नमय है। इस सौधर्मविमान में बत्तीस लाख विमानावास हैं। इन विमानों के मध्यदेशभाग में पांच अवतंसक कहे गये हैं--- 1. अशोकावतंसक, 2, सप्तपर्णावतंसक, 3. चंपकावतंसक, 4. चूतावतंसक और इन चारों के मध्य में है 5. सौधर्मावतंसक / ये अवतंसक रत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। इन सब बत्तीस लाख विमानों में सौधर्मकल्प के देव रहते हैं जो महद्धिक है यावत् दसों दिशाओं को उद्योतित करते हुए प्रानन्द से सुखोपभोग करते हैं और अपने सामानिक प्रादि देवों का अधिपत्य करते हुए रहते हैं। परिषदों और स्थिति आदि का वर्णन 199. (अ) सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो कइ परिसाओ पण्णत्तानो ? गोयमा! तओ परिसानो पण्णत्ताओ-तं जहा, समिया चंडा जाया। अभितरिया समिया, मज्झमिया चंडा, बाहिरिया जाया। सक्कस्स णं भंते ! देविवस्स देवरन्नो अभितरियाए परिसाए कई देवसाहस्सीओ पण्णत्ताप्रो ? मज्झिमियाए परिसाए० तहेव बाहिरियाए पुच्छा ? गोयमा ! सक्कस्स देविदस्स देवरनो अभितरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए चउद्दस देयसाहस्सीओ पण्णताओ, बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीग्रो पण्णत्ताओ, तहा-अभितरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि, मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि, बाहिरियाए पंच देवीसयाणि पण्णत्ताई। सक्कस्स णं भंते ! देविदस्स देवरन्नो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? एवं मज्झिमियाए बाहिरियाएवि पुच्छा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org