________________ 92] [जीवाजीवाभिगमसूत्र प्रभंकरा / शेष वक्तव्यता चन्द्र के समान कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि यहां सूर्यावतंसक विमान में सूर्यसिंहासन पर कहना चाहिए। उसी तरह ग्रहादि की भी चार अनमहिषियां हैं-विजया, वेजयंती, जयंति और अपराजिता / इनके सम्बन्ध में भी पूर्ववत् कथन करना चाहिए। 197. चंदविमाणे णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिइ पण्णत्ता? एवं जहा ठिईपए तहा भाणियव्वा जाव ताराणं / एएसि णं भंते ! चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा, वहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा? गोयमा ! चंदिमसूरिया एए णं दोण्णिवि तुल्ला सम्वत्थोवा / संखेज्जगुणा णक्खत्ता, संखेज्जगुणा गहा, संखेज्जगुणाप्रो ताराओ / जोइसुद्देसनो समत्तो। 197. भगवन् ! चन्द्रविमान में देवों की कितनी स्थिति कही गई है ? इस प्रकार प्रज्ञापना में स्थितिपद के अनुसार तारारूप पर्यन्त स्थिति का कथन करना चाहिए। भगवन् ! इन चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चन्द्र और सूर्य दोनों तुल्य हैं और सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुण नक्षत्र हैं। उनसे संख्यातगुण ग्रह हैं, उनसे संख्यातगुण तारागण हैं / ज्योतिष्क उद्देशक पूरा हुआ। विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में स्थिति के सम्बन्ध में प्रज्ञापना के स्थितिपद की सूचना की गई है। वह इस प्रकार है चन्द्र विमान में चन्द्र, सामानिक देव तथा आत्मरक्षक देवों की जघन्य स्थिति पल्योपम के चतुर्थ भाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। यहाँ देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम के चतुर्थ भाग प्रमाण और उत्कृष्ट पांच सौ वर्ष अधिक प्राधे पल्योपम की है। सूर्यविमान में देवों की जघन्य स्थिति 1 पल्योपम और उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। यहां देवियों की स्थिति जघन्य है पल्योपम और उत्कृष्ट पांच सौ वर्ष अधिक आधा पल्योपम की है। ग्रह विमानगत देवों की जघन्य स्थिति पल्योपम और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। यहां देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थभाग और उत्कृष्ट आधा पल्योपम है / __ नक्षत्रविमान में देवों की जधन्य स्थिति 3 पल्योपम और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है। यहां दवियों को जघन्य स्थिति पल्योपम और उत्कृष्ट कुछ अधिक है पल्योपम की है। ताराविमान में देवों की जघन्य स्थिति पल्योपम की और उत्कृष्ट 3 पल्योपम है / देवियों की स्थिति जघन्य ई पल्योपम और उत्कृष्ट कुछ अधिक पल्योपम का भाग प्रमाण है। ॥ज्योतिष्क उद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org