________________ 96] [जीवाजीवाभिगमसूत्र सौधर्मकल्प की तरह जानना चाहिए। विशेषता यह है कि वहां ईशान नामक देवेन्द्र देवराज आधिपत्य करता हुआ विचरता है। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज की कितनी पर्षदाएं हैं ? गोतम तीन पर्षदाएं कही गई हैं—समिता, चंडा और जाया। शेष कथन पूर्ववत् कहना चाहिए / विशेषता यह है कि ग्राभ्यन्तर पर्षदा में दस हजार देव, मध्यम में बारह हज बाह्य पर्षदा में चौदह हजार देव हैं। आभ्यन्तर पर्षदा में नौ सौ, मध्यम परिषदा में आठ सौ और बाह्य पर्षदा में सात सौ देवियां हैं। भगवन् ! ईशानकल्प के देवों की स्थिति कितनी कही गई है ? गौतम ! आभ्यन्तर पर्षदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम, मध्यम पर्षदा के देवों की स्थिति छह पल्योपम और बाह्य पर्षदा के देवों की स्थिति पांच पल्योपम की है। देवियों की स्थिति की पृच्छा ? प्राभ्यन्तर पर्षदा की देवियों की स्थिति कुछ अधिक पांच पर्षदा की देवियों की स्थिति चार पल्योपम और बाह्य पर्षदा की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की है। तीन प्रकार की पर्षदाओं का अर्थ आदि कथन चमरेन्द्र की तरह कहना चाहिए। 199 (इ) सणंकुमाराणं पुच्छा ? तहेव ठाणपदगमेणं जाय सर्णकुमारस्स तो परिसाओ समियाइ तहेव / नवरं अभितरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए दस देवसाहस्सीनो पण्णत्ताओ / बहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णताओ। अभितरियाए परिसाए देवाणं अद्धपंचमाइं सागरोवमाइं पंचपलिनोवमाइं ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाइं चत्तारि पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाई तिण्णि पलियोवमाइं ठिई पण्णत्ता / अट्ठो सो चेव। __ एवं माहिंदस्सवि तहेव / तओ परिसाओ, णवरं अभितरियाए परिसाए छ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीनो पण्णत्ताओ, बाहिरियाए दस देवसाहस्सोमो पण्णत्तायो। ठिई देवाणं अभितरियाए परिसाए श्रद्धपंचमाइं सागरोवमाइं सत्त य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सागरोबमाई छच्च पलिनोवमाई, बाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाई पंच य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। तहेव सव्वेसि इंदाणं ठाणपदगमेणं विमाणाणि वुच्चा तो पच्छा परिसाओ पत्तेयं पत्तेयं वुच्चइ / 199 (इ) सनत्कुमार देवों के विमानों के विषय में प्रश्न करने पर कहा गया है कि प्रज्ञापना के स्थानपद के अनुसार कथन करना चाहिए यावत् वहां सनत्कुमार देवेन्द्र देवराज हैं / उसकी तीन पर्षदा हैं-समिता, चंडा और जाया / प्राभ्यन्तर परिषदा में आठ हजार, मध्यम परिषदा में दस हजार और बाह्य परिषदा में बारह हजार देव हैं। प्राभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और पांच पल्योपम है, मध्यम पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और चार पल्योपम है, बाह्य पर्षद् के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और तीन पल्योपम की है। पर्षदों का अर्थ पूर्व चमरेन्द्र के प्रसंगानुसार जानना चाहिए। (सनत्कुमार में और आगे के देवलोक में देवियां नहीं हैं। अतएव देवियों का कथन नहीं किया गया है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org