________________ 90] [जीवाजीवाभिगमसूत्र . 196. (अ) जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे तारारुवस्स तारारुवस्स एस णं केवइए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते? गोयमा ! दुविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा-वाघाइमे य निवाघाइमे य / तत्थ णं जे से वाघाइमे से जहन्नेणं दोग्णि या छावठे जोयणसए उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साइं दोषिण य बायाले जोयणसए तारारुवस्स तारारुवस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / तत्थ णं जे से निव्वाधाइमे से जहन्नेणं पंचधणुसयाई उक्कोसणं दो गाउयाइं तारास्वस्स तारारुवस्स अंतरे पण्णत्ते। चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णताओ, तं जहा--चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा / एत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि देविसाहस्सीओ परिवारे य / पभू णं तओ एगमेगा देवी अण्णाइं चत्तारि चत्तारि देविसहस्साई परिवारं विउवित्तए / एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देविसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, से तं तुडिए। 196. (अ) भगवन् ! जम्बूद्वीप में एक तारा का दूसरे तारे से कितना अंतर कहा गया है ? गौतम ! अन्तर दो प्रकार का है, यथा-व्याघातिम (कृत्रिम) और निाघातिम (स्वाभाविक)। व्याघातिम अन्तर जघन्य दो सौ छियासठ (266) योजन का और उत्कृष्ट बारह हजार दो सौ बयालीस (12242) योजन का कहा गया है। जो निर्व्याघातिम अन्तर है वह जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट दो कोस का जानना चाहिए। (निषध व नीलवंत पर्वत के कूट ऊपर से 250 योजन लम्बे-चौड़े हैं / कूट को दोनों ओर से आठ-आठ योजन को छोड़कर तारामंडल चलता है, अतः 250 में 16 जोड़ देने से 266 योजन का अन्तर निकल आता है / उत्कृष्ट अन्तर मेरु की अपक्षा से है। मेरु को चौड़ाई दस हजार योजन की है और दोनों प्रोर के 1120 योजन पटेता छोड़कर तारामण्डल चलता है। इस तरह 10 हजार योजन में 2242 मिलाने से उत्कृष्ट अन्तर पा जाता है।) भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की कितनी अग्रमहिषियां हैं ? गौतम ! चार अग्रमहिषियां हैं, यथा---चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अचिमाली और प्रभंकरा / इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी अन्य चार हजार देवियों को विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार कुल मिलाकर सोलह हजार देवियों का परिवार हो जाता है। यह चन्द्रदेव के "तुटिक' अन्तःपुर का कथन हुआ। 196. (आ) पभू णं भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंद डिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासंणसि तुडिएण सद्धि दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? णो इणठे समढें / से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ नो पभू चंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धि दिव्याई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्तए ? गोयमा ! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंदडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए माणवगंसि चेइयखंभंसि वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयायो जिणसकहानो सण्णिक्खित्ताओ चिट्ठति जानो णं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org