Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 54] [जीवाजीवाभिगमसूत्र भगवन् ! चन्द्रविमान का प्रायाम-विष्कंभ कितना है ? परिधि कितनी है? और बाहल्य (मोटाई) कितना है ? गौतम ! चन्द्रविमान का आयाम-विष्कंभ (लम्बाई-चौड़ाई) एक योजन के 61 भागों में से 56 भाग (11) प्रमाण है। इससे तीन गुणी से कुछ अधिक उसकी परिधि है। एक योजन के 61 भागों में से 28 भाग (16) प्रमाण उसकी मोटाई है। सूर्यविमान के विषय में भी वैसा ही प्रश्न किया है। गौतम ! सूर्यविमान एक योजन के 61 भागों में से 48 भाग प्रमाण लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणो से कुछ अधिक उसकी परिधि और एक योजन के 61 भागों में से 24 भाग (34) प्रमाण उसकी मोटाई है। ग्रहविमान प्राधा योजन लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक परिधि वाला और एक कोस की मोटाई वाला है / नक्षत्रविमान एक कोस लम्बा-चौड़ा, इससे तीन गुणी से कुछ अधिक परिधि वाला और प्राधे कोस की मोटाई वाला है। ताराविमान प्राधे कोस की लम्बाई-चौड़ाई वाला, इससे तिगुनी से कुछ अधिक परिधि वाला और पांच सौ धनुष की मोटाई वाला है / विवेचन इस सूत्र में चन्द्रादि विमानों का आकार आधे कबीठ के प्राकार के समान बतलाया गया है। यहां यह शंका हो सकती है कि जब चन्द्रादि का आकार अर्धकबीठ जैसा हो तो उदय के समय, पौर्णमासी के समय जब वह तिर्यक् गमन करता है तब उस आकार का क्यों नहीं दिखाई देता है ? इसका समाधान करते हुए कहा गया है कि-यहां रहने वाले पुरुषों द्वारा अर्धकपित्थाकार वाले चन्द्रविमान की केवल गोल पोठ ही देखी जाती है; हस्तामलक की तरह उसका समतल भाग नहीं देखा जाता / उस पीठ के ऊपर चन्द्रदेव का महाप्रासाद है जो दूर रहने के कारण चर्मचक्षुओं द्वारा साफ-साफ दिखाई नहीं देता।' 194. (अ) चंदविमाणं णं भंते ! कइ देवसाहस्सीओ परिवहति ? गोयमा ! (सोलस देवसाहस्सीओ परिवहति) चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मल-दहियणगोखीर-फेणरययनिरप्पगासाणं महुगुलियपिंगलक्खाणं थिरलट्ठपऊवट्टपोवरसुसिलिट्ठसुविसिटुतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहाणं (पसत्थसत्यविरुलियभिसंतकक्कडनहाणं) विसालपोवरोरु-पडिपुण्णविउल-खंधाणं मिउविसय-पसत्थसहुमलक्खण-विच्छिण्ण-केसरसडोवसोभियाणं चंकमियालयपुलितधवलगवियगईणं उस्सिय 1. अद्धकविट्रागारा उदयत्थमणम्मि कहं न दीसंति ? ससिसुराण विमाणा तिरियखेत्तट्रियाणं च // उत्ताणद्धकविट्ठागारं पीठं तदुवरिं च पासायो। वट्टालेखेण ततो समवटें दूरभावाप्रो / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org