________________ 82] [जीवाजोवाभिगमसूत्र गोयमा ! सूरविमाणानो णं असीए जोयणेहि चंदविमाणे चारं चरइ। जोयणसए प्रबाहाए सव्वोवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ। चंदविमाणाओ णं भंते ! केवइयं अबाहाए सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ ? गोयमा! चंदविमाणाओ गं वीसाए जोयणेहि अबाहाए सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरद / एवामेव सपुष्वावरेणं दसुत्तरसयजोयणबाहल्ले तिरियमसंखेज्जे जोइसविसए पण्णत्ते। जंबद्दीवे णं भंते ! दीवे कयरे णक्खत्ते सब्भितरिल्लं चारं चरति ? कयरे णक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चार चरइ ? कयरे णक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरइ ? कयरे णक्खते सभितरिल्लं चारं चरइ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे अभीइनक्खत्ते सभितरिल्लं चारं चरइ, मूले नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरइ, साइणक्खत्ते सव्योवरिल्लं चारं चरइ, भरणीनक्खत्ते सव्वहेटिल्लं चारं चरइ / 192. भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिष्कदेव कितनी दूर रहकर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं ? गौतम ! ग्यारह सौ इक्कीस (1121) योजन दूरी से प्रदक्षिणा करते हैं। इसी तरह दक्षिण चरमान्त से, पश्चिम चरमान्त से और उत्तर चरमान्त से भी ग्यारह सौ इक्कीस योजन दूरी से प्रदक्षिणा करते हैं। भगवन् ! लोकान्त से कितनी दूरी पर ज्योतिष्कचक्र कहा गया है ? गौतम ! ग्यारह सौ ग्यारह (1111) योजन पर ज्योतिष्कचक्र है / भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से कितनी दूरी पर सबसे निचला तारारूप गति करता है ? कितनी दूरी पर सूर्यविमान गति करता है? कितनी दूरी पर चन्द्रविमान चलता है ? कितनी दूरी पर सबसे ऊपरवर्ती तारा चलता है ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से 790 योजन दूरी पर सबसे निचला तारा गति करता है / आठ सौ (800) योजन दूरी पर सूर्यविमान चलता है। आठ सौ प्रस्सी (880) योजन पर चन्द्रविमान चलता है। नौ सौ (900) योजन दूरी पर सबसे ऊपरवर्ती तारा गति करता है। ___ भगवन् ! सबसे निचले तारा से कितनी दूर सूर्य का विमान चलता है ? कितनी दूरी पर चन्द्र का विमान चलता है ? कितनी दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है ? गौतम ! सबसे निचले तारा से दस योजन दूरी पर सूर्यविमान चलता है, नब्बै योजन दूरी पर चन्द्रविमान चलता है / एक सौ दस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है। __ भगवन् ! सूर्यविमान से कितनी दूरी पर चन्द्रविमान चलता है ? कितनी दूरी पर सर्वोपरि तारा चलता है ? __गौतम ! सूर्यविमान से अस्सो योजन की दूरी पर चन्द्रविमान चलता है और एक सौ योजन ऊपर सर्वोपरि तारा चलता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org